#उचित समय आने पर !
👩🦰 #उचित समय आने पर !
पाठशाला से पहले दिन बेटी रुआंसी लौटी।
“क्या हुआ?” माँ ने पूछा।
“वहाँ मेरे साथ कोई खेलता ही नहीं!”
“तूने अपनी कला दिखाई होगी। किसी की चोटी खेंची होगी। किसी के कान में अंगुली करी होगी।”
“वो सब तब करती जब खेलती। मुझे किसी ने खेलाया ही नहीं।”
“हुँह।”
“ऊँ. . .!”
माँ-बेटी जब अपनी-अपनी कहसुन चुकीं तब अपना मत सार्वजनिक करने को पिता ने गला खंखारा कि तभी दादी बोल पड़ीं, “आ तू मेरे साथ खेल।”
“वो तो मैं नित्यप्रति खेला करती हूँ दादीजी, वहाँ भी तो कोई खेले।”
“उचित समय आने पर”, अब पिता ने कहना आरंभ किया, “उचित समय आने पर हम दिव्य प्रीतिभोज का आयोजन करेंगे। जिसमें बूंदी, खीर, बर्फी, घेवर, चूरमा, रबड़ी, रेबड़ी, फीणी, जलेबी, आमरस, कलाकंद, रसगुल्ला, रसमलाई, नानखटाई, मावाबर्फी, पूरणपोली, मगजपाक, मोहनभोग, मोहनथाल, खजूरपाक, मीठी लस्सी, गोल पापड़ी, बेसन लड्डू, शक्करपारा, मक्खनबड़ा, काजूकतली, सोहनहलवा, दूध का शर्बत, गुलाबजामुन, गोंद के लड्डू, नारियलबर्फी, तिलगुड़लड्डू, आगरा का पेठा, गाजर का हलवा, पाँच प्रकार के पेडे, पाँच प्रकार की गज़क, बीस प्रकार का हलवा और बीस प्रकार के श्रीखंड होंगे। उस दिव्य प्रीतिछप्पनभोज में तुम्हारी कक्षा के सभी बच्चों को बुलाएंगे। और फिर, वे सब तुम्हारे साथ खेलेंगे।”
अगले दिन, पाठशाला से लौटते ही बेटी ने धूम मचा दी, “आज सब बच्चे मेरे साथ खेले।”
“और यह कैसे हुआ?” माँ का स्वर संदेह से भरा था।
“मैंने सुबह ही सबको बता दिया कि मैं और मेरे पिता उचित समय आने पर दिव्य छप्पनभोग का आयोजन करेंगे जिसमें एक सौ छप्पन व्यंजन होंगे। उसमें पाँच प्रकार के पानी वाले गोलगप्पे, लाल गुलाबी हरे पीले नीले बर्फ के गोले, पाँच प्रकार के पापड़, हलवा, पूरी, खीर, राजमां, चने, छोले, मकई के फुल्ले, लालपीली दाल और बुड्ढी माई के बाल भी होंगे। उस दिव्य छप्पनभोग में हम उन बच्चों को बुलाएंगे जो मेरे साथ खेलेंगे।”
माँ भुनभुना रही थीं, “दोनों पितापुत्री एक जैसे हैं।”
“तुझे छप्पन तक की गणना आती है?” दादी ने पूछा।
“वहाँ किसी को भी नहीं आती, दादी।”
“और यह छप्पनभोग से एक सौ छप्पन कैसे हो गए?”
“पिताजी ने छप्पन बताए थे उसमें एक मैंने जोड़ दिया। हो गए एक सौ छप्पन।”
“तूने कौनसा एक जोड़ा?”
“दिव्य छप्पनभोग में गंदीमंदी चॉकलेट नहीं होगी।”
“यह तो नहीं होगी। लेकिन, तूने जोड़ा क्या?”
“मैंने कहा, इस पाठशाला में जितने बच्चे हैं और जितनी उनकी मांएं हैं और उन सबमें जो अधिक सुंदर हैं, मेरी माँ, वे इस दिव्य छप्पनभोग में सेविका होंगी।”
“और यह दिव्य छप्पनभोग का आयोजन होगा कब?”
“उचित समय आने पर।”
“और, यह उचित समय कब आएगा?”
“दादी जी, आप बच्चों से भी अधिक चटोरी हैं।”
“दादीमाँ से ऐसे बात करते हैं?” माँ के मुखमंडल और स्वर दोनों में अग्नि की लालिमा झलक रही थी।
“मैंने आपसे कुछ कहा?”
“नहीं।”
“क्यों भला?”
“क्यों?”
“क्योंकि आप माँ हैं!”
“और दादी?”
“दादी तो मेरी सखी हैं। हैं न दादी!”
अब सबके अधरों पर मुस्कान थी।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२