ई वी एम (हास्य व्यंग) मानवीकरण
ई वी एम मशीन
(हास्य व्यंग्य )
मानवीकरण
××××÷÷÷×××××
मैं ई वी एम मशीन, सभी को भाती ।
निष्पक्ष हृदय से सदा, चुनाव कराती।
है कौन कौन को कहाँ, चाहने वाला।
किसका दिल फेरे मन में किसकी माला।
मैं सबका सही हिसाब बताने वाली।
मैं नहीं किसी को व्यर्थ सताने वाली।
तुम पास अकेले मेरे,
खुलकर आओ।
दिल धड़क रहा है जरा,नहीं घबडाओ ।
एकान्त कक्ष में देख, न कोई सकता।
अब शर्म झिझक की रही, न आवश्यकता।
चुपचाप फटाफट प्रखर बुद्धि से पेखो।
ऊपर से नीचे मुझको पूरी देखो।
मनचाहा चिन्ह मिला तो हरषाओगे।
पर सिर्फ देखने में ना, सुख पाओगे ।
टच करो दबाओ मुझे मिलन अवसर है।
बेझिझक दबाओ नहीं किसी का डर है।
गर सही दबाया,राज तुरत खोलूँगी।
हो गया काम तो फिर पीं पीं बोलूँगी।
निकलो निकलो अब बाहर मेरे राजा।
जाने को है ये पीछे का दरबाजा।
क्या हुआ मिरे सँग नहीं, किसी से कहना।
परिणाम मिलेगा पर तबतक चुप रहना।
मैं लोकतंत्र को सफल बनाने आई।
हेरा फेरी की नहीं चले चतुराई।
जिनको न प्यार मिलता बक बक करते हैं।
खुद तो अयोग्य हैं मुझपर शक करते हैं।
कहते हैं जन मानस से,कटी हुई हूँ।
हैं खास लोग मैं, जिनसे पटी हुई हूँ।
मेरे चरित्र पर यों आरोप लगाते।
मैं सही सही हूँ पर बिगड़ी बतलाते।
अंदर से अंदर बंद, बहुत गहरे में।
मैं रही सुरक्षित सख्त पुलिस पहरे में।
तिल नहीं जोडते बात, ताड़ की मुझसे।
कहते हैं किसीने ,छेड़ छाड़ की मुझसे।
सुनकर पीं पीं आवाज, भले सुख पाओ।
परिणाम एक सा चाहे
कहीं दबाओ।
सुन सुन ये बातें रोना, मुझको आता।
ना मानें उनसे रूठा, भाग्य विधाता।
वे बेइमान मक्कार देश के घातक।
जो छल के बल से करें इस तरह पातक ।
मन जीतें ऐसा जिनमें जोश नहीं है।
वे दोषी हैं यह मेरा दोष नहीं है।
ये हवा प्रदूषित हारे ,ने चलवाई।
मैं तो निष्पक्ष चुनाव कराने आई ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
25/4/24