ईश ……
ईश …
नैनों के यथार्थ को
शब्दों के भावार्थ को
श्वास- श्वास स्वार्थ को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
रिश्तों संग परिवार को
छोरहीन संसार को
नील गगन शृंगार को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
अदृश्य जीवन डोर को
सांझ रैन और भोर को
जीवन के हर छोर को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
कौन चलाता पल -पल को
कौन बरसाता बादल को
नील व्योम के आँचल को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
सुशील सरना