Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Nov 2020 · 3 min read

“ईश्वरीय उपहार”

यह सच है कि जीवन में जब स्थिति हमारे हाथ में नहीं होती है, तो हर व्यक्ति परेशान हो जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ था क्षमा के साथ, लेकिन सबसे बड़ी बहन जो ठहरी! जिसके चार छोटे भाई थे। पिता सरकारी प्रेस में थे, एक दिन अचानक ही बीमार पड़ गए और बस तकलीफ हुई इसलिए उनके ऑफिस के सहयोगी साथियों ने उन्हें घर पर छोड़ दिया था! और सिर्फ पीने के लिए पानी ही मांगा था उन्होंने, चंद मिनटों में पसीने में तरबतर हो गए थे और एकाएकी स्वर्ग सिधार गए।
घर पर एक भाई मौजूद था, जिसको कुछ भी समझ में नहीं आया कि पिताजी कुछ ही देर में सबको अकेले छोड़कर चल बसे। क्षमा तो ऑफिस में थी! “अब घर-परिवार की सारी ज़िम्मेदारी क्षमा पर आ गई, अब माँ के साथ-साथ भाईयों का भी ध्यान रखना आवश्यक हो गया।”
वह अपने जीवन में किसी भी स्थिति का सामना करने और आर्थिक मदद करने में सक्षम थी, जैसे उसने अपने दिमाग को मानों पहले से ही मजबूत कर रखा था। वह नगर निगम में सेवारत थी और वहां का माहौल तब इतना अच्छा भी नहीं था, लेकिन वह मां को संबल देते हुए घर की देखभाल करने की कोशिश कर रही थी और सारा काम बड़ी लड़की कर रही थी|

अब माँ को इस बात की चिंता थी कि क्षमा की शादी कैसे होगी, लेकिन वह स्वयं के लिए सभी स्तंभों के बारे में बिना सोचे अपने भाईयों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश कर रही थी और वह सफल भी रही|
जीवन में कभी-कभी हमें अपनों के लिए ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं क्योंकि हम उनके लिए दुनिया में आए हैं!”और यही सकारात्मक सोच ही तो हमें अपनों के नज़दीक लाती है!जीवन में मुश्किल वक्त कभी कहकर नहीं आता है साथियों, तब अपनों का साथ ही जिंदगी को बेहतर बनाने में मददगार साबित होता है।
यदि क्षमा उस समय अपने ही बारे में अगर सोचती तो……….आप स्वयं मन ही मन विचार करें! जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा| फिर क्षमा ने भी वही किया जो उस वक्त उसके हाथ में था। वह अपने भाईयों के बेहतर भविष्य के लिए लगातार प्रयास कर रही थी।
वह हिंदी भाषा में एम.ए. उत्तीर्ण थी। उसने अच्छे अंकों के साथ हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण ही, उसे जल्द ही ऑफिस में उसका लाभ भी मिला और उसे अनुभाग प्रमुख के रूप में पदोन्नत किया गया।
परिवार में आर्थिक पक्ष मजबूत होने से धन की कोई कमी नहीं हुई और भाईयों की शिक्षा सुचारू रूप से पूरी हुई। हालाँकि, माँ को इस बात की चिंता थी कि वह दिन-ब-दिन बड़ी हो रही है, लेकिन क्षमा ने स्वयं के विवाह के बारे में न सोचते हुए, अपने भाईयों के विवाह की व्यवस्था की और बहुत धूमधाम से उनके विवाह भी रचाए! मां बहुत ही खुश थी और वह इस तरह अपने परिवार के साथ पूरे अपनेपन के साथ फिर से जुड़ गई।

“उसकी सकारात्मक सोच यही थी कि मैं हमेशा सभी की मदद करती रहूंगी। तत्पश्चात भाइयों को अपने बच्चों की शिक्षा की खातिर अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ा और फिर वे भी अपने परिवार की जिम्मेदारियों में मशगूल हो गए।”
हालाँकि, क्षमा अपनी माँ के साथ रही। उसकी पूरी सेवा भी कर ही रही था। कुछ दिन ऐसे ही गुजरे, लेकिन हम यह नहीं जानते हैं कि कभी-कभी परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं होती है। एक दिन, क्षमा मंदिर के दर्शन के लिए निकली और मंदिर की सीढ़ियों पर एक नन्हीं सी परी मिली! मां भी साथ ही थी। पंडितजी ने आशीर्वाद दिया! स्वीकार कर लो बेटी। हो सकता है, यह ईश्वरीय उपहार हो।
तब माता ने कहा, “बेटी क्षमा पंडित जी सही कह रहे हैं, वो हम कहते हैं न, ईश्वर प्रदत्त लक्ष्मी को स्वीकार करने में ही परम आनंद की अनुभूति है| उस नन्हीं परी को जीवन में एक नई दिशा दे, यह महसूस करते हुए कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है, ताकि अपना जीवन भी सार्थक हो सके! तू उसके लिए एक अच्छी एवं सक्षम पालनहार मां साबित होगी! यह मेरा आशीर्वाद है बेटी।
जी हां साथियों सुख-दुख प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आते हैं! पर आई हुई परिस्थितियों का सामना करने में अपनों का साथ शामिल हो तो जिंदगी हसीन हो जाती है।
मेरे प्रिय पाठकों बताइएगा जरूर फिर कैसी लगी यह कहानी? मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा|
यदि आप मेरा लेखन पसंद करते हैं तो आप सभी मेरे अन्य ब्लॉग पढ़ने हेतु भी आमंत्रित हैं।
धन्यवाद आपका।
आरती अयाचित

स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 357 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Aarti Ayachit
View all
You may also like:
डाइन
डाइन
अवध किशोर 'अवधू'
सुनो पहाड़ की...!!! (भाग - ९)
सुनो पहाड़ की...!!! (भाग - ९)
Kanchan Khanna
बिटिया  घर  की  ससुराल  चली, मन  में सब संशय पाल रहे।
बिटिया घर की ससुराल चली, मन में सब संशय पाल रहे।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
जय माता दी -
जय माता दी -
Raju Gajbhiye
■ इलाज बस एक ही...
■ इलाज बस एक ही...
*Author प्रणय प्रभात*
लघुकथा - एक रुपया
लघुकथा - एक रुपया
अशोक कुमार ढोरिया
ख़ियाबां मेरा सारा तुमने
ख़ियाबां मेरा सारा तुमने
Atul "Krishn"
* माथा खराब है *
* माथा खराब है *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बड़े ही फक्र से बनाया है
बड़े ही फक्र से बनाया है
VINOD CHAUHAN
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
कार्तिक नितिन शर्मा
यादों के छांव
यादों के छांव
Nanki Patre
इंसान हूं मैं आखिर ...
इंसान हूं मैं आखिर ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
"वो पूछता है"
Dr. Kishan tandon kranti
एक प्रयास अपने लिए भी
एक प्रयास अपने लिए भी
Dr fauzia Naseem shad
तीज मनाएँ रुक्मिणी...
तीज मनाएँ रुक्मिणी...
डॉ.सीमा अग्रवाल
और कितना मुझे ज़िंदगी
और कितना मुझे ज़िंदगी
Shweta Soni
कैसे देखनी है...?!
कैसे देखनी है...?!
Srishty Bansal
💐प्रेम कौतुक-401💐
💐प्रेम कौतुक-401💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*जीवन का आधार है बेटी,
*जीवन का आधार है बेटी,
Shashi kala vyas
माना कि मेरे इस कारवें के साथ कोई भीड़ नहीं है |
माना कि मेरे इस कारवें के साथ कोई भीड़ नहीं है |
Jitendra kumar
R J Meditation Centre, Darbhanga
R J Meditation Centre, Darbhanga
Ravikesh Jha
ख्वाहिश
ख्वाहिश
Neelam Sharma
3083.*पूर्णिका*
3083.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कोहली किंग
कोहली किंग
पूर्वार्थ
माँ तेरे दर्शन की अँखिया ये प्यासी है
माँ तेरे दर्शन की अँखिया ये प्यासी है
Basant Bhagawan Roy
रंग जीवन के
रंग जीवन के
kumar Deepak "Mani"
मातृभूमि
मातृभूमि
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मुझको कबतक रोकोगे
मुझको कबतक रोकोगे
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
ग़ज़ल _ मिरी #मैयत पे  रोने मे.....
ग़ज़ल _ मिरी #मैयत पे  रोने मे.....
शायर देव मेहरानियां
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
कवि रमेशराज
Loading...