ईमानदारी
ईमानदारी
‘‘समोसे ले लो, समोसे । मूंगबड़े ले लो । गरमागरम समोसे, मूंगबड़े ले लो ।’’ साइकिल के पीछे बक्सा बांधकर समोसे बेचने वाले की आवाज सुनकर अपने सरकारी बंगले के गार्डन में पौधों को पानी दे रहे शर्माजी ने उसे अपने पास बुलाया । जब वह पास आया, तो शर्माजी ने उससे पूछा, ‘‘ये समोसे और मूंगबड़े बनाए किसने हैं ?’’
उसने डरते हुए बताया, ‘‘इन्हें मैं और मेरी पत्नी मिलकर बनाते हैं साहब ।’’
शर्माजी ने पूछा, “साफ-सफाई का ध्यान रखते हो कि कुछ भी मिलाकर बना देते हो ?”
‘‘बिल्कुल नहीं साहब । सारा काम हम खुद ही करते हैं । हम साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं । कमाई भले थोड़ी कम होती है, पर हम लोगों की सेहत से खिलवाड़ नहीं कर सकते ।’’ उसने कहा ।
‘‘विचार तो तुम्हारे बहुत ही अच्छे हैं । कहीं दुकान लगाकर क्यों नहीं बेचते हो ?’’ शर्माजी ने पूछा ।
‘‘बाबूजी मुझ गरीब की इतनी हैसियत कहाँ कि मैं कहीं दुकान खोल सकूँ । इसलिए रोज अपनी हैसियत के मुताबिक दो डब्बों में समोसे और मूंगबड़े भरकर गलियों में घूम-घूम कर बेचता हूँ ।’’ उसने अपनी व्यथा बताई ।
‘‘अच्छा ठीक है, दिखाओ जरा हमें भी अपने समोसे और मूंगबड़े ।’’ शर्माजी ने कहा ।
‘‘हाँ हाँ, क्यों नहीं । ये देखिए ।’’ उसने डब्बे के ढक्कन खोल दिए ।
गरम समोसे, मूगबड़े और धनिया-टमाटर की चटनी की खुशबू शर्माजी को बेकाबू करने लगे । उन्होंने कहा, ‘‘लग तो रहे हैं बहुत ही स्वादिष्ट होंगे । अच्छा एक काम करो । पचास-पचास रुपए की दोनों दे दो ।’’
‘‘साहब आप ?’’ वह आश्चर्य से पूछा ।
‘‘क्यों ? इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?’’ शर्माजी ने कहा ।
‘‘दरअसल बात ये है साहब, कि मुझे आज पहली बार कोई बंगले में रहने वाले का ऑर्डर मिल रहा है । आज तक तो मैंने झुग्गी-झोपड़ी और गली मुहल्ले में ही बेचा हूँ । वो तो आज मैं गलती से इधर आ भटका हूँ ।’’ उसने समोसे और मूंगबड़े देते हुए बताया ।
‘‘ठीक है । अब से तुम कभी-कभी इधर भी आ जाया करना । मैं यहाँ कॉलोनी के मेरे कुछ पड़ोसियों को भी बता दूँगा । तुम्हारे समोसे, मुंगबड़े और तुम्हारी एक फोटो भी व्हाट्सएप पर शेयर कर दूंगा। इससे वे भी तुमसे खरीद लेंगे । और हां यदि तुम चाहो तो वो जो शहर के छोर में तहसील ऑफिस है न, दोपहर में लंच टाइम के आसपास वहां भी आ सकते हो। कोई कुछ बोले तो मुझे फोन कर बता देना । मैं ही वहां का तहसीलदार हूं । ये मेरा कार्ड है । अपने पास रखो । इसमें मेरा नाम और मोबाइल नंबर लिखा हुआ है ।’’ शर्माजी ने टेस्ट करने के बाद उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा ।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़