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26 Nov 2024 · 1 min read

इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,

इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,
हर परिंदे की उड़ान देख रहा हूँ।

वो जहाँ पहुंचे है वहाँ पहुंचने दो,
मैं तो अपना इम्तिहान देख रहा हूँ।

-प्रदीप राजपूत ‘चराग़’

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