इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,
इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,
हर परिंदे की उड़ान देख रहा हूँ।
वो जहाँ पहुंचे है वहाँ पहुंचने दो,
मैं तो अपना इम्तिहान देख रहा हूँ।
-प्रदीप राजपूत ‘चराग़’
इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,
हर परिंदे की उड़ान देख रहा हूँ।
वो जहाँ पहुंचे है वहाँ पहुंचने दो,
मैं तो अपना इम्तिहान देख रहा हूँ।
-प्रदीप राजपूत ‘चराग़’