इस जहां में अब वो, अजनबी नहीं मिलता..
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19.4.24
मुंसरह मुसम्मन मतवी मनहूर
मुफ़तइलुन फ़ाइलात मुफ़तइलुन फ़े
2112 2121 2112 2
इस जहां में अब वो, अजनबी नहीं मिलता
शक्ल का मुझसा भी आदमी नहीं मिलता
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ख़ास नहीं था कहीं लिबास छिपाया
मेरी तलाशी में कुछ कभी नहीं मिलता
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आज लगा आसमान दूर पहुँच से
राह में तकलीफ अब, सही नहीं मिलता
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एक तिराहा सुकून का, था मिरा दिल
चोट जिगर माँगता ,वही” नहीं मिलता
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छीन लिया रहबरी में चैन करार अब
वक्त मुझे खास खास भी नही मिलता
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़