इश्क़ हो तो ऐसा
मीरा! मीरा!मीरा!! मीरा कहाँ हो तुम? मीरा! मीरा!धूल और धुँध के गुबार से भरे रेतीले तुफान में कृष्णा जोर-जोर से इधर-उधर भागता हुआ मीरा,मीरा चिल्ला रहा था।
आवाज़ दूर तक फैले रेगिस्तान में गूंजकर धुयें से सुलगती हुई सूखी पहाड़ियों के जंगल से टकरा कर लौटकर वापिस आ रही थी बस मीरा की ही आवाज़ सुनाई नही दे रही थी।मीरा का कुछ पता ना था।
वो दूर तक नजर नही आ रही थी।कृष्णा पागलों की तरह रेगिस्तान की रेत छान रहा था।
मीरा शादी के मंडप से भागकर कृष्णा के पास आई थी।
हरियाणा के गाँव से रात के अँधेरे में दोनों घरवालों से बचने के लिये भागते-भागते घनी कंटीली झाड़ियों से घिरे जंगल में आ छिपे थे।
घरवाले भी गाड़ियों से पीछा करते हुए यहाँ तक आ पहुँचे थे।दोनों को जंगल में जाता देख मसाल फेंककर घरवालों ने पहाड़ी पर बसे जंगल में आग लगा दी।सुखे पेड़ों, झाड़ियों, सुखी घास में तेजी से आग फैलने लगी।
पहाड़ी पर बसा सारा जंगल चारों तरफ़ से जल उठा।
जब दोनों कई घंटों तक बाहर नही आये तो घरवाले ये सोचकर चले गये कि दोनों आग से नही बचे होंगे।
पहाड़ियों के पास में ही दूर-दूर तक फैला रेगिस्तान था।
बचते-बचते दोनों रेगिस्तान में आ गये थे।थके हारे,भूखे प्यासे दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े रेत पर ही सो गये।
जब आंख खुली तो देखा रेतीला तूफान आ गया है।आसमान रेत से भर गया था।मीरा और कृष्णा बचकर भाग रहे थे कि कृष्णा रेत के ढेर से बने ढलान से नीचे लुढ़क गया।लुढ़कता हुआ वो काफी नीचे चला गया।मीरा रेत के पठार पर ही धूल भरी आँधी में कृष्णा, कृष्णा पुकारती रह गई।अब मीरा की आवाज़ नही आ रही थी।
कृष्णा घुटनों के बल ऊपर चढ़कर आया।उड़ती हुई रेत में कुछ नजर नही आ रहा था।जो तुफान थमा तो मीरा की चुनरी ज़मीन पर पड़ी थी।कृष्णा ने चुनरी उठाई और रेत को यहाँं वहाँ खोदने लगा घंटों बाद भी कुछ हाथ ना लगा।
रोता बिलखता कृष्णा हाथ में रेत लिए तपती धूप में बैठा रहा।शाम हो गई।बेसुध पड़े कृष्णा पर वहाँ से गुजरते लोगों की नज़र पड़ी तो वे उसे उठाकर गाँव में ले आये।
जब कृष्णा को होश आया तो वो मीरा का नाम लेकर दहाड़े मारकर रोने लगा।काफी समझाने के बाद पानी पिया फ़िर कुछ खाया।
गांव वालों ने सारी बातें सुनी।सब बहुत दुखी हुए।सरपंच ने कहा चलो तुम्हे तुम्हारे घर तक छुड़वा दूँगा तो पता चला कि वो अनाथ है।
(मीरा बड़े खानदान की लड़की थी) कृष्णा को गाँव वालों ने बेटे की तरह अपना लिया।
अगले दिन कृष्णा रेगिस्तान में उसी जगह आ कर खड़ा हो गया जहाँ वो जुदा हुए थे।
रेत पर बैठकर भरी आंखो से मीरा से बातें करने लगा।रेत को चेहरे पर लगाया।
उसे रेत से मीरा का स्पर्श हो रहा था।
ऐसा लगता कि मीरा रेत से बाहर आकर अभी बोल उठेगी।
हर दिन वो ऐसे ही इस जगह आता और रेत पर बैठता अकेले ही प्यार भरी बातें करता, मीरा से साथ में रहने के सवाल करता।सवालों के जवाब माँगता दिन छिपने तक कोई ना कोई गाँव से आकर उसे बुला ले जाता।
एक दिन कोई सन्यासी वहाँं से गुजर रहा था।कृष्णा को बाते करता देख वो रुक गया सारी बातें सुनने के बाद वो ऊँट से उतर आया
सन्यासी- अरे बालक अकेले किसका नाम लेकर बातें कर रहे हो।ये मीरा कौन है?तेरी बातें सुनकर लगता है कि तु उसे बहुत प्यार करता है।
कृष्णा- बाबा मेरी मीरा यहीं कहीं है वो मुझे नही दिखती,बात भी नही करती।
सन्यासी ने कृष्णा के सिर पर हाथ रखा कुछ मंत्र सा पढ़ा।
कृष्णा अब शांत नज़र आ रहा था जैसे कोई लम्बी बेहोशी के बाद होश में आया हो।
कृष्णा- बाबा आपने ये क्या किया?मुझे बड़ा हल्कापन महसूस हो रहा है।
सन्यासी-बेटा क्यों इस रेगिस्तान में पड़ा है?
कृष्णा-इसी जगह रेगिस्तान में मीरा कहीं दफन हो गई मै भी यहीं मिट जाना चाहता हूं।
सन्यासी- बेटा ये जीवन यूंही किसी की याद में बर्बाद करने को नही मिला।
कृष्णा- बाबा क्या करूं मीरा की याद दिल से जाती ही नही,उसका चेहरा हर पल आँखों के सामने रहता है,
उसकी चुनरी में उसकी महक अभी तक मौजूद है।
उसके वो आखिरी शब्द कि मुझे छोड़कर मत जाना; हमेशा मेरे साथ रहना; मेरे कानों में अभी तक गूंजते हैं।
मैने उससे जीवन भर साथ देने का वादा किया था।
सन्यासी-अगर मीरा से सच्चा प्यार करता है तो अपने जीवन को खत्म करने के बजाये कुछ ऐसा कर कि लोग इस जगह को उसके नाम से जाने।तेरा इश्क़ अमर हो जाये।
कृष्णा को सन्यासी की बात समझ आ गई।
पैर छूकर सन्यासी को प्रणाम किया।
सन्यासी सफलता का आशीर्वाद देकर चला गया।
आसमान बादलों से भर आया बारिश होने लगी।
लौटकर गाँव आ गया।
बारिश काफ़ी तेज़ हो रही थी।लोग बरतनों में पानी भर रहे थे।
बहते पानी को देख सहसा ही एक विचार आया।
मन में एक बात ठान ली कि इस रेगिस्तान की रेत ने मीरा को छीना है इसकी जगह हरा भरा जंगल खड़ा कर देगा ताकि ये रेत फ़िर किसी को निंगल ना सके।
जंगल के लिए पानी चाहिये था रेगिस्तान में पानी कहाँ से आये।
इसलिये सरपंच से तालाब बनाने की बात कही ताकि पानी इकट्ठा हो सके।
तालाब खोदने का काम शुरू हो गया देखते ही देखते सात दिनों में तालाब तैयार हो चुका था।बारिश से कुछ पानी जमा भी हो गया।
जल सरंक्षण के लिये पुराने कुओं को भी पानी से भरने के लिये व्यवस्था की।
फ़िर रेत में पेड़ लगाने शुरू कर दिये,बंजर रेतीली ज़मीन को तीन साल में ही हरे भरे पेड़ों से भर दिया।
पेड़ों को लगाने का सिलसिला अब भी चल रहा है।
नौ साल बाद हजारों बीघा पेड़ों का जंगल तैयार खड़ा था।
दूर-दूर तक हरे भरे पेड़ों का जंगल दिखाई देने लगा।
किसी ने कल्पना भी ना की थी कि बंजर,रेतीली जमीन उपजाऊ हो जायेगी।
अब आसपास के कई गांव कृष्णा की मुहिम के साथ जुड़ चुके थे।
सबने मिलकर कई डैम बनाये है,तालाब खोदे गये हैं,
कई सौ रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं।
एक नहर भी यहाँ से गुजरे इस बात की अर्जी विधानसभा में पास हो चुकी है।नहर की खुदाई का काम भी शुरू हो चुका है।
कृष्णा को इस सराहनीय कार्य के लिये राष्ट्रीय वन महोत्सव के कार्यक्रम में सम्मानित किया गया है।
कृष्णा को उत्कृष्ट कार्य के चलते कई और भी राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, राज्य, जिला स्तर के पुरुस्कार मिल चुके हैं।
दो दशक बीत चुके हैं
जंगल की चारदीवारी की जा चुकी है।
जंगल के प्रवेश द्वार पर बड़े अक्षरों में लिखा है- “मीरा निवास”
कृष्णा आज भी मीरा से बेहद प्यार करता है।उसके पास शादी के कई प्रस्ताव आये पर उसने शादी नही की।मीरा की जगह कोई और उसके जीवन में स्थान नही पा सकता।
एक दिन कृष्णा वन सरंक्षण के किसी कार्यक्रम में मूख्य अतिथी के रूप में भाषण दे रहा था।
तभी उसकी नजर मंच से कुछ दूर सामने खड़े उसी सन्यासी बाबा पर पड़ी।
वो मंच से उतर कर बाबा के पास गया पैर छुए।
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
कुछ देर चुप रहने के बाद सन्यासी बाबा ने एक ही प्रश्न किया-
मीरा मिली क्या??
कृष्णा ने कहा हाँ बाबा मिल गई!!
सन्यासी कहाँ हैं वो?
कृष्णा ने गले में पड़ी मीरा की चुनरी पर हाथ फेरा और जंगल के द्वार पर लिखे मीरा निवास की ओर इशारा करते हुये कहा…………
इन बढ़ते पेड़ों की डालियों पत्तों में है मीरा,
पेड़ से आता हवा का ठंडा झोखा जब मुझे छूता है तो ऐसा लगता है जैसे मीरा का स्पर्श हो।
पेड़ों की छांव ऐसे लगती है जैसे मीरा का आंचल हो।
किसी पेड़ को छूता हूँ अनुभव होती है मीरा।
सारा जंगल ही मीरा की निशानी है।
वो इसी जंगल में मेरे साथ रहती है।
कहाँ नही है मीरा हर जगह है मीरा,मेरी मीरा!!!
सादर नमस्ते।
सौरभ चौधरी
धन्यवाद