इश्क
: इश्क:
प्रेम प्यार प्रीत मौहब्बत
और लगन और इश्क
जीवन का एक एक पन्ना
इन्हीं की दास्तान में
उलझा है या फिर सुलझा है.
इतना तो अवश्य है कि
इन के बिना अधूरा है
मानो जीवन जिया ही नहीं
इश्क हीर रांझा का
शीरीं फरहाद का
सोहनी महिवाल का
लैला मजनू का
और परिणति नहीं मिली .
परन्तु परिणति किसे मिली
कहाँ मिली :
राधा कृष्ण भी आत्मसाती थे
लक्ष्मण वन में रहे
उर्मिला मूक समर्पण में रही
घरती गगन में युगों की दूरी रही
सूरज चंदा भी कभी न मिले
पर्वत सागर भी कहां मिल सके
हां. इश्क का परचम लहराता रहा।
प्यार मौहब्बत तो ठीक हैं
इशक का जनून
बे इन्तहा है
जिस में मिलन नहीं
परिणति नही…
यह नियति है
इश्क की।
है. करुणा भल्ला