इश्क
इश्क को लिखना, इश्क को पढ़ना
आसां नहीं है इस इश्क को समझना।
इश्क ही मंदिर है, इश्क ही मस्जिद है
इश्क में इश्क का कोई धर्म नहीं है।
रूह इश्क से, इंसा की कब जुदा है
इश्क में जीकर जो इश्क को पाया है।
आठों पहर, बस इश्क ही लिखा है
इश्क में डूबकर जो इश्क किया है।
इश्क ही दुआ है, इश्क ही रजा है
इश्क में दिखता हर इंसान प्यारा है।
दांवे इश्क के, इश्क करता नहीं है
इश्क का फ़साना तो सबसे जुदा है।
इश्क ही रब की, सच्ची मेहर है
इस नाचीज़ को बस इतना पता है।
एहसास ए सुकून, है नाम इश्क का
इश्क जो करें उसे मिला खुदा है।
– सुमन मीना (अदिति)