इश्क मेरा
उसने कहा और मैं मान गया
दिल खिला और फिर टूट गया
है कहानी बस इतनी मेरे इश्क़ की
साथ मिला और फिर छूट गया
जाने क्यों कूदना चाहता था
मैं इस आग के दरिया में
जलना तो इसमें यकीनन था
था जो पास वो भी छूट गया
दे गया एक अनजान दर्द दिल को
क्यों वो मिला जो अब रूठ गया
दिखता नहीं किसी को दर्द उस बाग का
जहां फूल खिला और फिर सूख गया
हम तो चाहते थे हमें सुकून मिले
दिल में उसके थोड़ी सी जगह मिले
जगह मिली भी दिल को ख़ुशी भी हुई
वो ख़्वाब लेकिन जल्दी ही टूट गया
रब की रज़ा मेरी सज़ा बन गई
जबसे वो मेरा चैन लूट गया
गया है जबसे वो ज़िंदगी से मेरी
मेरा तो जीना भी छूट गया
दिल नहीं लगता कहीं भी अब
बस उसकी याद में खोया रहता हूं
जबसे चला गया वो मुझे अकेला छोड़कर
मेरा नसीब भी अब तो मुझसे रूठ गया