इश्क बना दुश्मन
दुश्मन अब रह तु अपनी औकात में
रेह के फिक्र है खुशियों की सौगात में
कभी आयाना उठा कर देख लीजिएगा
जिस वक़्त तू था इश्क़ मेरे साथ मे
मैं करता रहा मिन्नते उस सौगात में
पर दिखा ना तू मुझे खुद तेरी बारात में
कभी देखा नहीं है तूने खुद को
हम जब रहते थे तुम्हारे साथ में
बना बैठा है खुद दुश्मन तू अपनी बारात में