* इश्क न करियो बेशक मरियो *
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* इश्क न करियो बेशक मरियो *
दर्द का बहाना था
तुमको तो आजमाना था
अब मैं आ गया हुँ
बोलो तो कहाँ जाना था ||
आशिकी के नाम पर इल्जाम् न दिजिए
मुझको प्यार करने की सजा न दिजिए
आपको उल्फते इश्क से गिला है
पर मोहब्बत को कोई इल्जाम न दिजिए ||
आना पडा छोड कर हजारों काम
कैसे न आता बोलिये क्या है काम
अब आ गया हुँ तो शरमा रहे हैं जनाब
बेबाक पन से मिरे घबरा रहे है आप ||
छू लिया तेरा वदन जल गया हुँ
तपती हुई चिन्गारी से झुलस गया हुँ
सोचा न था इश्क होगा इतना हसीन
अदना सा आदमी हुँ घबरा गया हुँ ||
तेवर तुम्हारे देख देख बुखार चढ़ गया
हमको तो आशिकी का बीमार कर गया
हाल तुम्हारा क्या है हमको नही पता
छोटी सी मुलाकात को जज्बात कर गया ||