इश्क तुमसे हो गया देखा सुना कुछ भी नहीं
इश्क तुमसे हो गया देखा सुना कुछ भी नहीं।
तुझको मांगा है खुदा से और दुआ कुछ भी नहीं।
एकतरफा प्यार तुझसे कर लिया तो कर लिया।
इसमें है मेरी खता तेरी खता कुछ भी नहीं।
जितने थे जज़्बात आंसू बन के कागज पर गिरे।
उनको कैसे पढ़ सकोगे जब लिखा कुछ भी नहीं।
मैं तेरे हाथों को लेकर हाथ में बैठा रहा।
दिल ने बातें दिल से कह दी और कहा कुछ भी नहीं।
हर तरफ वीरानियां हैं दिल के खंडहर में “सगीर”।
पहले जो आबाद था अब तो वहां कुछ भी नहीं।।