इश्क के बीज बचपन जो बोए सनम।
इश्क के बीज बचपन जो बोए सनम।
आज बढ़कर वो देखो फ़सल बन गई।।
दिल ये तन्हा जिया हमसफ़र के बिना।
प्यार जी भर किया ये मसल बन गई।।
इस क़दर प्यार में हम जो रुसवा हुए।
नाम आकर जुड़ा तो फजल बन गई।।
झील नमकीन क्यों है खबर ना लिया।
अश्क मेरे नहाकर कमल बन गई ।।
आंख सूखी रही अब सजल बन गई।
दर्द दिल था प्रखर जो गज़ल बन गई ।।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर ‘