इश्क़ किसे कहते है?
फिर छिड़ी बहस, इश्क़, किसे कहते है
हो जो मर्ज लाइलाज ,इश्क़ उसे कहते है
आग का दरिया हो, या सहरा हो तूफानी
जों डूबे हो पार,इश्क़ उसे कहते है
जो करे पछताए ,ना करे वो पछताए
पछताकर भी न सुधरे, इश्क़, उसे कहते है
दुनिया बने दुश्मन या कर दे दीवारे दफन
मरकर भी जो अमर हो,इश्क़ उसे कहते है
बढ़ता ही जो जाए ,चढ़ता ही जो जाए
उतारे न उतरे भूत, इश्क़ उसे कहते है
शायर की शायरी हो या कल्पना कवि की
ना हो बयां किसी से, इश्क़ उसे कहते है
होता है जवाब, हर एक सवाल का
मगर हो लाजवाब ,इश्क़ उसे कहते है
दिल करे पराया ,करे धड़कन भी पराई
लगे पराया अपना, इश्क़ उसे कहते है
दिन में ख्वाब देखे, जो रात में जगाए
सपने में भी सताए, इश्क़ उसे कहते है
हर रूप से हो जाए ,हर उम्र में हो जाए
कहते है कभी अंधा ,इश्क़ उसे कहते है
होता नही किसी को ,मिलता नही किसी को
मिलके भी ना हो पूरा,इश्क़ उसे कहते है
करना है बड़ा मुश्किल, निभाना भी मुश्किल
होता नहीं जो आसां, इश्क़ उसे कहते है
इश्क किया जिसने, समझाते है सभी उसको
करे समझदार को पागल ,इश्क़ उसे कहते है
©प्रताप सिंह ठाकुर “राणाजी”