इश्क़ का कारोबार
प्यार की मीठी मीठी बातों से
मन को मोह ले जाते हैँ
प्रीत वफ़ा की कसमें खाकर
दिल को क्षल ये जाते हैँ
प्रेम भरे स्वप्न सजाके मन में
अपना घर कर जाते हैँ
धीरे धीरे चेहरा से पर्दा उतरता
इश्क़ का कारोबार से
कहीं का ना रहता है मन
बिखरता घर परिवार से
जिंदगी बिखर सी जाती है
सपना टूट जब जाता है
हौले हौले से जब मन को
ठोकर लगता है
तब तक हो जाती देर बहुत
इंसान दर्द जब सहता है
हर तरफ है कारोबार इश्क़ का
यहाँ पर प्रीत वफ़ा की कौन गाता है
धीरे धीरे सब फिर
फिर मुरझा जाता है
:
ममता रानी
झारखंड