इश्क़ अब बेहिसाब…….., है तो है..!
इश्क़ अब बेहिसाब…….., है तो है..!
मेरी आदत……….., ख़राब है तो है।
क्यों डरूँ..? मुश्किलों से मैं आख़िर,
ज़िंदगी ये……….., अज़ाब है तो है।
यूँ तो पीता……. नहीं हूँ मैं बिल्कुल,
आज लेकिन…….., शराब है तो है।
नींद से क्या……, शिकायतें करनीं ?
एक टूटा सा ख़्वाब………, है तो है।
आख़िरश क्यों करूं मैं कीमत कम?
एक उलझी…….., किताब है तो है।
कैसे बदलूँ…., मिज़ाज अपने अब ?
ख़ामुशी में……….., जवाब है तो है।
मैं हूँ ठहरा…., हुआ सा इक दरिया,
वो उफ़नती………, चिनाब है तो है।
पंकज शर्मा “परिंदा”