इम्तिहान
इम्तिहान
बहुत से प्रश्न उठे थे तेरी देयता पर
तेरे न्याय और व्यवस्था पर
इतने संशयों से घिरे कि
तेरे अस्तित्व पर भी संदेह हो उठा।
फिर जब तू नहीं तो
तुझसे शिकायतें भी कैसी
चारों तरफ गहन अबूझ अंधेरा
शायद इतना ही अंधेरा जरूरी होता है
एक दिन के उगने के पीछे।
पहली बार महसूस हुआ तेरा एहसास
जैसे हाथ पकड़कर भंवर से खींच रहा तू,
और दे दी मेरे दिए को एक लौ
जिससे बहुत कुछ देख पा रही हूँ।
अब समझ पा रही हूँ
मार्ग में बाधाओं, दुःखों का प्रयोजन,
ये इम्तिहान है दक्षता हासिल करने के लिए।
जैसे शिक्षक प्रिय शिष्य को
दक्ष बनाने के लिए देता है
कठिन से कठिन प्रश्न।
वैसे ही परमात्मा प्रिय आत्मा को
देता है कठिनतम मार्ग, असह्य दुःख
तपकर निखर आने को।