इब्ने सफ़ी
डॉ अरूण कुमार शास्त्री 💐 एक अबोध बालक💐 अरुण अतृप्त
💐 इब्ने सफ़ी 💐
मिरे मौला मिरे मौला मिरे मौला
दर पे तिरे आया हूँ मैं तिरे दीदार को
मैं तो हुँ इक सवाली बना ।।
मिरे मौला मिरे मौला मिरे मौला
दर पे तिरे आया हूँ मैं तिरे दीदार को
मैं तो हुँ इक सवाली बना ।।
हसरत थी दबी दबी तल्खी थी दबी दबी
इश्क़ था इश्क़ की रौनाई थी तनी तनी
दर्द था मद्धम मद्धम चोट थी नयी नयी
इतरे हिना की खुशबू से मेरी पेशानी थी
सनी सनी
मुझे कौल था अल्लाह का मुझे थी नबी की जुबां
मुझे कौल था अल्लाह का मुझे थी नबी की जुबां
मेरी आशिकी को मिल गया, जैसे रास्ता दोनों जहाँ
मिरे मौला मिरे मौला मिरे मौला
दर पे तिरे आया हूँ मैं तिरे दीदार को
मैं तो हुँ इक सवाली बना ।।
तेरी मोहब्बत की रौशनी तेरे हुनर का इकबालिया
मैंने सहरा में आके भी पा लिया आलमे दोनों जहां
अब और कुछ चाहूँ नही अब और कुछ चाहूँ नही
जब से तेरा दीदार है मैंने किया
मिरे मौला मिरे मौला मिरे मौला
दर पे तिरे आया हूँ मैं तिरे दीदार को
मैं तो हुँ इक सवाली बना ।।
मै तो अबोध बालक था अरुण अतृप्त
अपने नबी की शान के इतर मैं डूबा हुआ
आकर गले लगाया मुझको प्यार से नहला दिया ।।