इबादत
मस्जिद से आए जो आवाज़ अज़ान की।
तो मैं भी करूं पूजा अपने भगवान की।।
बच्चों की इबादत हैं उनके खेल खिलौने।
बेटियां हैं मासूम हिंदू की या मुसलमान की।।
आरती ,नमाज़ से क्या हासिल तुझको।
होगी परख उसके घर तेरे आमाल की।।
यकीं है की नवाजेगा वो तुझको जन्नत।
इंशा है तो कद्र होगी वहां इंसान की।।
होगा जब फैसला तेरा खुदा के रु ब रू।
निकलेगी वहां बात बस तेरे ईमान की।।
तेरी इबादत से हम परेशां नहीं होते।
कहेगा काफिर तो ये बात है गुमान की।।
आया था कहां तू दिल मैं नफरत लेकर।
अदब कहां है दिल में गीता कुरान की।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (एम पी)