इबादत न होती
दिलों में बेइन्तहा गर चाहत न होती।
तो मोहब्बत क़भी भी इबादत न होती।
ये दिल आशियाना क़भी भी न होता,
और दिल में किसी की हिफाज़त न होती।
न दिल होता मुज़रिम निगाहों के खातिर,
और निगाहों से क़भी भी शरारत न होती।
जिंदगी का तज़ुर्बा चाहत से है आया,
ये चाहत न होती तो कयामत न होती।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी