इन रास्तों को मंजूर था ये सफर मेरा
इन रास्तों को मंजूर था ये सफर मेरा
पर मंझिल गुमशुदा थी तन्हा सफ़र मेरा
कही अजनबी मिलते रहे खुशहाली में
अब तंगहाली में मुफ़लिसी का सफर मेरा
जब भी हाथ उठाये आसमाँ को छुए थे
अब ज़मी पे मुश्किल क़दमो का सफर मेरा
वक़्त ने भी नजरों को कही धोके दिए है
इन मायुस आँखों में अश्कों का सफर मेरा
‘अशांत’ हालात में सबकी पहचान होती है
अपने नदारद हो गये अब पराया सफर मेरा
✍️ © ‘अशांत’ शेखर