इन्सानिय़त की आव़ाज़
कुछ सोचकर मै अपने बढ़ते कदमों को रोक लेता हूँ।
कुछ बेब़स लाचार लोगों की म़दद करने आम़ादा मेरे हाथों को पीछे खींच लेता हूँ ।
शायद मेरी यह ज़ुर्रत कुछेक फिरकापरस्त सियासतदानों को नाग़वार गुज़रे ।
जो इन्सान से इन्सान का फ़र्क मज़हब की ब़िना पर करते हैं ।
जिनके लिये इन्सानिय़त के फर्ज़ की अदाय़गी फ़क्त एक दिख़ावा है।
जिसे कुछ अऩासिर अपनी ज़ाती फायदे के लिये करते हैं।
ये फिरकापरस्त अपने ऱसूख़ का इस्तेम़ाल कर म़ज़लूमों की म़दद में रोड़े अटकाते हैं ।
इनके लिये कौम़ की ख़िदमत और हुब्ब़ुलवतनी सियासती तिज़ारत चमकाने का सिर्फ़ एक नारा है।
जब तक इनके ख़िलाफ आवाज़ बुलंद नही की जायेगी इन्सानिय़त शर्म़सार होती रहेगी।