इन्तजार करिए बस साहब…
इन्तजार करिए बस साहब…
इन्तजार करिए बस साहब अपनी अपनी बारी का.
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
आतंकी को करें समर्थन घर में उन्हें छुपाते हैं,
सुख सुविधा देते हैं सारी सपरिवार बिछ जाते हैं,
धोखेबाजी पत्थरबाजी कुटिल धूर्तता चालाकी,
पर इल्जाम लगाते हम पर देखें इनकी बेबाकी,
पाकपरस्ती मन में इनके दिखे भाव ऐयारी का
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
इन्तजार करिए बस साहब ………………………
मज़हब से तो करें मुहब्बत मगर मुल्क से वफ़ा नहीं,
दारुल हरब बने इस्लामिक मकसद उनका एक यही,
हरा तिरंगा केवल चाहें जाने कैसी फितरत है,
भगवा उदित अस्त हो सूरज पर उससे ही नफरत है.
बाबर पाक प्रेम जो अब तक क़त्ल करें खुद्दारी का.
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
इन्तजार करिए बस साहब ………………………
कश्मीरी पंडित बसते थे उनको मार निकाला है
धरती का था स्वर्ग कभी जो नर्क उसे कर डाला है,
अमरनाथ यात्रा चुभती है आये दिन हमले होते,
लोग निहत्थे मारे जाते शिवभक्तों को हम खोते,
बरस रहे अंगारे पल-पल यही सिला है यारी का.
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
इन्तजार करिए बस साहब ………………………
चूस रहे संसाधन सारे है हराम नसबंदी पर,
चार बीबियाँ बारह बच्चे बना दिया खाला का घर,
घर घर में उपजें जेहादी उनकी कोशिश जारी है,
देश बांटकर पाक बनाया दोबारा तैयारी है,
मौका पाते मारें गोली शीलहरण हो नारी का.
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
इन्तजार करिए बस साहब ………………………
करें शीघ्र इसका निदान अब अपने को तैयार करें,
कूटनीति से काम चलेगा इनकी जड़ पर वार करें,
गेहूं संग घुन भी पिसता है सुनी कहावत बचपन में,
गरल पिया था शिवशंकर ने समझें इसको निज मन में.
करना होगा सफल प्रदर्शन अपनी इस तैयारी का,
काश्मीर में मौत बँट रही हाल देख गद्दारी का..
इन्तजार करिए बस साहब ………………………
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’