इतिहासमें गुम माँ
विषय ………इतिहास की गुमनाम मातायें
विधा……….गद्य
दिनांक…….04/05/2022
आलेख
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श्रीमती सुमित्रा देवी
रामायण के प्रमुख पात्र राम के भाई लक्ष्मण की माँ थी सुमित्रा। रामायण में कैकयी को जो प्रसिद्धि मिली है उतनी कौशल्या को नहीं मिली और सुमित्रा का नाम मात्र ही रह गया।
सुमित्रा,प्रकारांतर से रामायण की प्रमुख पात्र और राजा दशरथ की तीन महारानियों में से एक थीं। सुमित्रा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी तथा लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की माता थीं। महारानी कौशल्या पट्टमहिषी थीं। महारानी कैकेयी महाराज को सर्वाधिक प्रिय थीं और शेष में श्री सुमित्रा जी ही प्रधान थीं। सुमित्रा जी महारानी कौशल्या के सन्निकट रहना तथा उनकी सेवा करना अपना धर्म समझती थीं। पुत्रेष्टि-यज्ञ समाप्त होने पर अग्नि के द्वारा प्राप्त चरू का आधा भाग तो महाराज ने कौशल्या जी को दिया शेष का आधा कैकेयी को प्राप्त हुआ। चतुर्थांश जो शेष था, उसके दो भाग करके महाराज ने एक भाग कौशल्या तथा दूसरा कैकेयी के हाथों पर रख दिया। दोनों रानियों ने उसे सुमित्रा जी को प्रदान किया। समय पर माता सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। कौशल्या जी के दिये भाग के प्रभाव से लक्ष्मण जी श्रीराम के और कैकेयी जी द्वारा दिये गये भाग के प्रभाव से शत्रुघ्न जी भरत जी के अनुगामी हुए। वैसे चारों कुमारों को रात्रि में निद्रा माता सुमित्रा ही कराती थीं। अक्सरपुत्र प्रेम में माता कौशल्या श्री राम को अपने पास सुला लेतीं। रात्रि में जगने पर वे रोने लगते। माता रात्रि में ही सुमित्रा के भवन में पहुँचकर कहतीं- ‘सुमित्रा! अपने राम को लो। इन्हें तुम्हारी गोद के बिना निद्रा ही नहीं आती देखो, इन्होंने रो-रोकर आँखे लाल कर ली हैं।’ श्री राम सुमित्रा की गोद में जाते ही सो जाते।
साहित्य में सुमित्रा
कौशल्या की अपेक्षा सुमित्रा प्रखर, प्रभावी एवं संघर्षमयी रमणी है । कैकेयी के वचनों की पालना एवं श्रीराम प्रभु के साथ जब लक्ष्मण अपनी माता से वन जाने की आज्ञा चाहते हैं तो वह कहती है कि जहाँ श्रीराम जी का निवास हो वहीं अयोध्या है । जहाँ सूर्य का प्रकाश हो वहीं दिन है । यदि निश्चय ही सीता-राम वन को जाते हैं तो अयोध्या में तुम्हारा कुछ भी काम नहीं है । ‘मानस’ की उक्त पंक्तियाँ अवलोकनीय हैं- अवध तहाँ जहँ राम निवासू । तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू । जौं पै सीय राम बन जाहीं । अवध तुम्हार काजु कछु नाहीं॥[1]
सुमित्रा ने सदैव अपने पुत्र को विवेकपूर्ण कार्य करने को प्रेरित किया । राग, द्वेष, ईर्ष्या, मद से दूर रहने का आचरण सिखाया और मन-वचन-कर्म से अपने भाई की सेवा में लीन रहने का उपदेश दिया,
यथा- रागु रोषु इरिषा मदु मोहू । जनि सपनेहुँ इन्ह के बस होहू ।। सकल प्रकार विकार बिहाई । मन क्रम वचन करेहु सेवकाई॥
निष्कर्ष —इस प्रकार सुमित्रा इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि नवीन चेतना से सुसम्पन्न नारी है। वह एक आदर्श माँ के रूप में राम-लक्ष्मण को कर्म करने के लिए प्रेरित करती है ।उसने कभी अपने पुत्र द्वारा राम का अनुकरण या दासवत् सेवा करने पर ग्लानि महसूस नहीं की। एक उच्च आदर्श व सँस्कारी माँ ही यह कर सकती है। इतिहास में खो चुकी इस माँ के पुत्र के लिए आज भी संसार कहता है कि …पुत्र और भाई हो तो लक्ष्मण जैसा।
***परिचय गूगल से साभार
मनोरमा जैन पाखी ..
मेहगाँव ,जिला भिंड