इतना न कर प्यार बावरी
खूब प्रणय ने आज जताया
अंर्तमन अधिकार साॅंवरी।
समझाते प्रियतम यह कहकर
इतना मत कर प्यार बावरी।।
सजल प्रतीक्षित नयन मिले हैं
राहें ऑंख बिछाये हैं।
अनुभव से ज़ख्मी ऑंखों ने
पीड़ा भाव छुपाए हैं।
उछल-उछल जल कहे नदी का
ऑंचल तनिक सॅंवार बावरी।
समझाते प्रियतम ये कहकर
इतना मत कर प्यार बावरी।।
नदी किनारे रेत प्रतीक्षित
सीपी तड़पी प्यास लिए।
नंगे पाॅंवों दौड़ पड़ी है
प्रिया! मिलन की आस लिए।
क्यों कपोल दहके लज्जा से
पूछ रही हर धार बावरी।
समझाते प्रियतम ये कहकर
इतना मत कर प्यार बावरी।।
मिलन के लम्हें सॅंवर रहे थे
जागी मिलीं सजी रतियाॅं।
सहसा आतुर नयन मिले थे
सिहरी थीं चंचल बतियाॅं।
धवल चाॅंदनी और मोंगरे का
पहनाया हार बावरी।
समझाते प्रियतम ये कहकर
इतना मत कर प्यार बावरी।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ