इंसान भी कितना मूर्ख है कि अपने कर्मों का फल भोगता हुआ दुख औ
इंसान भी कितना मूर्ख है कि अपने कर्मों का फल भोगता हुआ दुख और अंधकार से घिरा हुआ होने पर भी वह अपने अहम व मिथ्याभिमान के कारण यह भी नहीं देख पाता कि वह सब कुछ खो चुका है, यह जानते हुए भी कि जीवनरूपी दीप न जाने किस क्षण और कब बुझ जाए।
पंकज कुमार तोमर