इंसान की खोज।
पत्थरों के शहर में अब
इंसान नजर नहीं आते,
रहते हों इंसान जहाँ
वो मकां नजर नही आते,
थक गया हूँ ढूंढते ढूंढते
एक अदद इंसान को,
इंसानों के शक्ल में भी
इंसान नजर नहीं आते।।
…….
इंसानों के शहर में अब
इंसान ढूंढ रहा हूँ,
मंदिरों में जा जाकर
भगवान ढूंढ रहा हूँ।
………©®
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”