Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2024 · 1 min read

सहूलियत

इंसान अपने लिए हर सहूलियत चाहता है लेकिन दूसरे को सहूलियत देना हो तो हजार बहाने ढूंढता है कि देना न पड़े… अपनी कोई चीज देना नहीं चाहता और दूसरे की जितना बने उतना लेना चाहता है… मतलब शेयर कुछ नहीं करना चाहता और हड़पना सबकुछ चाहता है, दूसरों की खातिर थोड़ी भी गर्मी, ठंड, बरसात नहीं सहन कर सकता और अपनी खातिर दूसरों से समझौता कराना बहुत चाहता है । अब ऐसा व्यक्ति कितने भी तीरथ करे , भजन पूजन करे, सब बकवास है, समय की बर्बादी है उसकी मानसिकता तो जस की तस है। इन्हीं को कहते हैं धूर्त और पाखंडी और चालाक भी ‌। जबकि सज्जन व्यक्ति हमेशा दूसरों के लिए समर्पित रहता है दूसरों का काम बनाने के लिए परिस्थितियों से समझौता कर लेता है। अब ऐसा व्यक्ति पूजा करे न करे उसका हर कर्म ही पूजा है भगवान ऐसे ही लोगों के मन मस्तिष्क में वास करते हैं, इसलिए उनको विनम्र और दयालु बनाते हैं।
✍️प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान©
सागर मध्यप्रदेश भारत
( 06 जुलाई 2024 )

49 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
" जब तक आप लोग पढोगे नहीं, तो जानोगे कैसे,
शेखर सिंह
छोटी- छोटी प्रस्तुतियों को भी लोग पढ़ते नहीं हैं, फिर फेसबूक
छोटी- छोटी प्रस्तुतियों को भी लोग पढ़ते नहीं हैं, फिर फेसबूक
DrLakshman Jha Parimal
■ छोटी दीवाली
■ छोटी दीवाली
*प्रणय*
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
“मन में घर कर गया हो अगर,
“मन में घर कर गया हो अगर,
Neeraj kumar Soni
कितना प्यार
कितना प्यार
Swami Ganganiya
"भीड़ से अलग चल"
Dr. Kishan tandon kranti
पश्चिम का सूरज
पश्चिम का सूरज
डॉ० रोहित कौशिक
"वक्त" भी बड़े ही कमाल
नेताम आर सी
Pollution & Mental Health
Pollution & Mental Health
Tushar Jagawat
जो इंसान मुसरीफ दिखे,बेपरवाह दिखे हर वक्त
जो इंसान मुसरीफ दिखे,बेपरवाह दिखे हर वक्त
पूर्वार्थ
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
संजय कुमार संजू
'प्रहरी' बढ़ता  दंभ  है, जितना  बढ़ता  नोट
'प्रहरी' बढ़ता दंभ है, जितना बढ़ता नोट
Anil Mishra Prahari
बद्रीनाथ के पुजारी क्यों बनाते हैं स्त्री का वेश
बद्रीनाथ के पुजारी क्यों बनाते हैं स्त्री का वेश
Rakshita Bora
4961.*पूर्णिका*
4961.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कर्म पथ पर
कर्म पथ पर
surenderpal vaidya
मजा मुस्कुराने का लेते वही...
मजा मुस्कुराने का लेते वही...
Sunil Suman
हे मानव! प्रकृति
हे मानव! प्रकृति
साहित्य गौरव
कुछ मुस्कुरा के
कुछ मुस्कुरा के
Dr fauzia Naseem shad
परदेसी की  याद  में, प्रीति निहारे द्वार ।
परदेसी की याद में, प्रीति निहारे द्वार ।
sushil sarna
एक और सुबह तुम्हारे बिना
एक और सुबह तुम्हारे बिना
Surinder blackpen
मां का घर
मां का घर
नूरफातिमा खातून नूरी
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
सपने थे आंखो में कई।
सपने थे आंखो में कई।
Rj Anand Prajapati
পৃথিবী
পৃথিবী
Otteri Selvakumar
यह मौसम और कुदरत के नज़ारे हैं।
यह मौसम और कुदरत के नज़ारे हैं।
Neeraj Agarwal
कैसे बदला जायेगा वो माहौल
कैसे बदला जायेगा वो माहौल
Keshav kishor Kumar
हिलोरे लेता है
हिलोरे लेता है
हिमांशु Kulshrestha
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
डॉ.सीमा अग्रवाल
Dictatorship in guise of Democracy ?
Dictatorship in guise of Democracy ?
Shyam Sundar Subramanian
Loading...