इंसानियत
इंसानियत
आज पड़ोस में रहने वाली सीताबाई ने
मुझे देख एक फिकी सी मुस्कान दे कर पूछ ही लिया कहा से आ रही हो बेटी तो मैंने कहा में नोकरी से वापस आ रही हूँ दादीजी।फिर पूछा कि क्या करती हो बेटी,,,
मेने कहा में शिक्षिका हुँ बच्चों को पढ़ाती हूँ।तब उसने बोला वहहहह बेटा ये तो बहुत अच्छा काम करती हो।मेने कहा हाँ दादी
तब मेने भी उनसे पूछ लिया तुम इतना खांस क्यों रही हो क्या इलाज नही करवाया तुमने अस्पताल जाकर तब अचानक उसके चेहरे पर मायूसी छा गयी और बोली बेटी मेरे पास कुछ भी रुपया पैसा नही है में तो रोज दुसरो के घरों में बर्तन मांजने जाती हूं और अपना गुजारा करती मेने पूछा घर मे कौन कौन रहता है आपके साथ तब सीताबाई ने मुझे बताया कि मेरा एक ही बेटा रवि है जो मैंने उसे पढ़ा लिखाकर विदेश भेज दिया।पहले तो मुझे वो कभी कभी फोन लगा लिया करता था आज कम से कम मुझे 1 बरस हो गया उसने फोन नही लगाया।और न कोई संदेश भेजा।मेरा तो इस दुनिया मे कोई नही रह गया बोलकर सीताबाई के आँखों से आँसू बहने लगे।मुझे उनपर दया आने लगी उनकी उम्र लगभग 65 बरस
लग रही थी सच आज मुझे बहुत दुख हो रहा था।सीताबाई की इस परिस्थिति पर में सोच रही थी कि अगर आज सीताबाई को कुछ हो जाता है तो उसकी सेवा करने वाला कोई नही रह जाता हैं।
मुझे आज उसके बेटे नालायक रवि पर बहुत अफ़सोस हो रहा की कैसे उसने अपनी माँ की ममता को भुला दिया और कोई खेर खबर भी नही ले रहा।
मैं सोच रही थी कि क्या आज रवि के मन मे अपनी माँ के लिए कोई जगह नही क्या दौलत ने उसे इतना अंधा बना दिया कि उसे अपनी बूढ़ी माँ की भी कोई चिंता नही रह गई।आज उसके अंदर मानो इंसानियत मर गयी थी जनता को उसकी माँ पर रोना आ रहा था लेकिन वो तो दौलत और विदेश की चाकचोन्द में पूरा का पूरा गुलाम हो गया था और ऊपर से वहाँ की गोरी अंगरेजन से शादी कर बीवी के हाथों की कठपुतली बन माँ को भूल ही गया
आज भी मुझे ऐसे नालायक और खुदगर्ज रवि पर और उसकी भद्दी इंसानियत पर बहुत क्रोध आता है
मैंने मुझसे जितना बना सीताबाई की मददत की और उन्हें डॉक्टर से दिखाया इलाज कर पूरा खर्च अपने जुम्मा ले लिया।आज मुझे सीताबाई माँ से भी बढ़कर प्रेम करती है।मुझे उसका आशीर्वाद हमेशा ऐसे ही मिलता रहे।
गायत्री सोनू जैन