इंसानियत
ये हसरतें ,ये दौलतें ,अब बेमानी साबित हो रही है।
बिन कंधों ये अर्थियां ,अब मजबूर होकर रो रही है।
इंसान का अच्छा काम भी अब काम नही आ रहा है,
घरों में इंसानियत कैद है ,बेफिक्र होकर सो रही है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय
ये हसरतें ,ये दौलतें ,अब बेमानी साबित हो रही है।
बिन कंधों ये अर्थियां ,अब मजबूर होकर रो रही है।
इंसान का अच्छा काम भी अब काम नही आ रहा है,
घरों में इंसानियत कैद है ,बेफिक्र होकर सो रही है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय