“इंसानियत” मुक्तक
“इंसानियत”
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बहा कर प्रीत का सागर, सरस सम भाव उपजाएँ।
बनें हम नेक फ़ितरत से, चलो इंसान बन जाएँ।
मिटा कर नफ़रती दौलत मुहब्बत का सबक सीखें।
भुला कर मजहबी रिश्ते,अमन सुख चैन हम पाएँ।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)