इंतहा
इंतहा, इंतज़ार की पीड़ा, मत पूछो मुझसे तुम आज,
पीड़ा से निकलती सर्द आहे, याद करु छोड सारे काज।
तेरे ही दीदार को तरसती है मेरी प्यासी आँखे ,
लोग उडाते है उपहास मेरा इंतज़ार बना मेरा साज।
नयनो को कैसे समझाऊं, बरसते है वो दिन रात,
इंतज़ार के फूल खिले दर पर आ भी जाओ मेरे सरताज।
दीदार हुए तेरे दुर्लभ अनगिनत दुआओं की भरमार,
प्रभु की कृपा रहे अशेष मिलन की घड़ी का हो आगाज।
पिया गये विदेश इंतजार करूँ उनका मै हर लम्हा ,
विरहन बन घूमती हूँ मैं तरस रही सुनने को आवाज।
क्या याद नही आती तुमको क्यूँ भूल गये साँवरे सरकार,
मूरत बन गई ‘राज’ तुम्हारी पहना दो ना मिलन का ताज। ।