इंतजार
आज रवि पूरे एक साल बाद घर लौट रहा था। वैसे टेलिफोन पर तो घरवालों से लगभग रोज ही बात होती थी। पर आवाज अकेली काफी कहाँ होती है।
सुबह से ही कविता अपने बेटे के पसंद की खाने की चीज़ें बनाने में जुटी हुई थी। उसका कमरा तो कल रात ही साफ सफाई कर के पूरी तरह व्यवस्थित कर दिया था।
बीच बीच में ,घर के दरवाजे तक जाकर फिर लौट आती थी। ट्रैन आने का समय हो गया था।
राजेश को दो एक बार बोल भी चुकी कि स्टेशन तक हो आते।
राजेश ने कहा कि तुम्हारा बेटा कोई बच्चा नहीं है कि रास्ता भूल जाएगा।
फिर जब वो चौथी बार घर के दरवाजे पर आई, तब राजेश ने खीज कर कहा, इतनी क्यूँ आतुर हुई जा रही हो,
तुम्हारा बेटा, जब घर की गली मे दाखिल होगा तो देखना,
कौवे बोलने लगेंगे, कोयल गाने लगेगी, कुत्ते भी भौकेंगे, तुम्हे खबर मिल जाएगी।
कविता गुस्से में बोली, देखो जी तुम तो अपना मुँह बंद ही रखो तो अच्छा है।
राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा , एक कप चाय मिलेगी क्या?
कविता झुँझलाती हुई बोली , सुबह से तीन बार तो पी चुके हो, मेरे पास क्या यही एक काम रह गया है ?
ये कह कर वो भुनभुनाती हुई किचन में जाकर फिर व्यस्त हो गयी।
राजेश स्टेशन फ़ोन कर चुका था, ट्रेन तो ४० मिनट पहले आ भी चुकी थी, सोचने लगा अभी तक आया क्यूँ नही?
तभी रवि उसे रिक्शे से गली में दाखिल होता हुआ दिखाई दिया।
उतरते ही उसने पूछा कि इतनी देर कैसे लग गयी, ट्रेन तो कब की आ चुकी? थोड़े दुबले लग रहे हो, खाना पीना ठीक से नही करते हो क्या?
रवि ने उसके पांव छूते हुए कहा कि नुक्कड़ पर चाचा जी मिल गए थे और एक दोस्त ने अपने घर के लिए कुछ सामान भिजवाया था, रास्ते में उसका घर पड़ता है, देता हुआ आया हूँ।
राजेश ने कहा, अरे भाई सामान बाद में दे आते, तुम्हारी माँ ने तो
यहां सारा घर सर पर उठा रखा है।
फिर किचन की ओर देखकर कहा, सुनती हो क्या, आ गया तुम्हारा लाट साहब, अपनी आँखों को बोल दो कि डबडबाना शुरू करें।
इतना कहकर वो मुस्कुराने लगा।
अब घर के किचन में बहुत देर तक उसे झांकने की भी इजाजत नहीं होगी।
राजेश चुपचाप चप्पल डालकर, गली के चायवाले की ओर बढ़ने लगा।
अभी कुछ देर के लिए उसकी मौजूदगी की वैसे भी कोई जरूरत नहीं थी!!!