इंडिया !! भारत से मिलवाता हूँ|
एक लोहे के बाहन मे, बैठा था एक ब्यापारी
सह यात्री से बोला जब बार्ता थी उनकी जारी
सात प्रदेश भ्रमण करने की इच्छा थी मेरे मन मे
बहुत शहरो को देख लिया अबतक इस जीवन मे
इस वृतांत मे इंडिया को, भारत से मिलवाता हूँ
इस यात्रा से आओ तुमको, अवगत करवाता हूँ|
सभी रसो की अनुभूति की. इस खंड मे काल के
हर उस छोटी बड़ी याद को, हमने रक्खा है संभाल के
श्रृंगार, करूँण और वीभत्स , रोज ही इनका पहरा था
शेला पास से गुजर रहेथे, भयानक रस का चेहरा था
हास्य तो शायद महसूस किया, हर घटते क्षण के साथ
मगर वो कोई भूल न पाया, प्रातः हुई तेजपुर की बात
चाय वाली बहन का जब, सामग्री बिना भी सेवा भाव
नहीं है बसुधा मे अभी, समर्पण- प्रेम का अभाव
भारत माता की सेवा मे जब देखा वीर जवानो को
बुमला पास के रखवालो को, मतवालों को दीवानो को
संचार मन मे ऊर्जा का था, नमन उनके बलिदानो को
स्मरण रहे सपूतो का भय, कितव चीनी खानदानों को
ग्रीष्म ऋतु मे आरम्भ हुई राष्ट्रीय राजधानी से
यात्रा सफल सम्पूर्ण हुई, कामाख्या के पानी से
प्रथम दिवस प्राँगण से लौटे, बिन देवालय जाये
दर्शन होते है तभी यहाँ, जब माता तुम्हे बुलाये
मनमोहक है दृश्य यहाँ मेघों का आलय है
बात चीत है अपनी उनसे जो इनके चालक है
स्वीकार् सभी बिनती की हमारी, वरुण, करुणसागर ने
मूल निवासी अति रोचस है, प्रेम बरसाया गागर से
सब संपन्न पूर्ण जीवन मे, फिर ये कैसी उदासी
क्या कभी तुम्हे कहा किसी ने, तुम मन से हो सन्यासी
परिधान व आभूषण आपके, कुछ और ही है कहते
पावन विचार आपके मानो, निर्मल जल से जैसे बहते
एक गुड़िया के आँसु है जो कारण ब्याकुलता का
कभी आपने प्रेम है देखा बृक्ष और लता का
नन्हे हॉथो की याद है जहाँ मोल न किसी सम्पति का
उत्तर दिया, मुस्कराया, कहा, यही नियम धर्म नियति का !!!