इंकलाब जिंदाबाद
इंकलाब जिंदाबाद
खुद के धमाके से अलग धमाके आखिर उसे क्यों डराते हैं,
अन्य विद्रोह, पर खुद वाला सुरक्षा के लिए जरूरी बताते हैं ।
निज़ाम कितना अहंकार में डूबा है हैरत है,
बिना धमाके कुछ सुनता नहीं कितना बेगैरत है ।
कविता हो महिमा मंडन से अलग तो निज़ाम को डर लगता है,
इसी करके अहंकारी निज़ाम का दरबार भाट-चरणों का घर लगता है ।
निजाम जनता की ना सुने-देखे यह अक्सर होता है,
अहंकार में जब आंख, कान बंद कर निज़ाम सोता है ।
यदि योंही आंख कान बंद कर सोते रहेंगे,
होते रहे हैं, आंख, कान खोलने वाले धमाके और होते रहेंगे ।
जब जब भटकाने की कोशिश हुई युवा शक्ति फिर जुटी है,
युवा ज्यादा जागृत हुआ है और इंकलाब की लहर उठी है ।