ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
मन मेरा गाँव गाँव न होना मुझे शहर
दाढ़ी में तेरे तिनका है, ओ पहरे करने वाले,
जो सरकार धर्म और जाति को लेकर बनी हो मंदिर और मस्जिद की बात
आसान नहीं हैं बुद्ध की राहें
मुदा एहि "डिजिटल मित्रक सैन्य संगठन" मे दीप ल क' ताकब तथापि
कविता और गरीब की लुगाई / MUSAFIR BAITHA
*बुरी बात को बुरा कह सकें, इतना साहस भर दो (गीत)*
हज़ारों चाहने वाले निभाए एक मिल जाए
है धरा पर पाप का हर अभिश्राप बाकी!
बेटियों को मुस्कुराने दिया करो
तुम्हारा मेरे जीवन में होना
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,