ज़िन्दगी एक बार मिलती हैं, लिख दें अपने मन के अल्फाज़
" इस दशहरे १२/१०/२०२४ पर विशेष "
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
छंद मुक्त कविता : अनंत का आचमन
*तन्हाँ तन्हाँ मन भटकता है*
इश्क तो बेकिमती और बेरोजगार रहेगा,इस दिल के बाजार में, यूं ह
सुनो - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
उल्फ़त .में अज़ब बात हुआ करती है ।
अब तो इस राह से,वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
यूँ तैश में जो फूल तोड़ के गया है दूर तू
बुढ़ापे में भी ज़िंदगी एक नई सादगी लाती है,
*अच्छा रहता कम ही खाना (बाल कविता)*