आ फिर लौट चलें
आ अब फिर चलें लौट कर।
अपने उस सुन्दर से गांव में ।
चल बैठे फिर चल कर हम ।
पनघट के पीपल की छांव में।।
हम हो गए पागल थे कितने।
मधुबन छोड़ कर निकल पड़े।
खेत रो रहे बिलख- बिलख ।
खलिहान बिचारे बिकल पड़े।।
बगिया में खेलना गुल्ली-डंडा।
फिर जम के नहाना पोखर में ।
मां के हाथों की वह मोटी रोटी।
महुआ का लाटा कुटना ओखर में।।
रामू दादा के उस गुलवर की।
तो बात ही बड़ी निराली थी।
पकते गुड़ की सुगंध ने भैया।
मानो सबकी हवा निकाली थी।
याद है आते जब वो दिन प्यारे।
कहानी सुनना नीम की छांव में।
आ फिर चल कर बैठे हम अब।
पनघट के पीपल की छांव में।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम