आ ठहर विश्राम कर ले।
आ ठहर विश्राम कर ले।
भार उर का कुछ तो हर ले।।
तू समझता है कि जग में,
तू ही केवल जड़ बना है।
हां यही स च मानकर,
शायद तू इतना अनमना है,
भ्रम तिमिर को दूर कर के,
ज्ञान का उजियार भर ले।
आ ठहर विश्राम कर ले।।
जो पथिक पथ पर चला ना,
विघ्न की पहचान लेकर,
लघु कंटकों ने भी गिराया,
मधुमयी पुचकार देकर,
है यही जीवन कहानी,
तू इसे स्वीकार कर ले।
आ ठहर विश्राम कर ले।।
दूर कर अवरोध को,
तत्क्षण सहज गतिमान होकर,
हर निराशा तंतु में,
नव आस के मोती पिरोकर,
जिंदगी की सौम्य ग्रीवा में,
सुनहरा हार धर ले।
आ ठहर विश्राम कर ले।।
जटिल हो कर भी लचीला,
जो तरल जल सा बना है,
सार्थक जीवन जिया,
प्रतिमान भी ऊंचे गढ़ा है,
त्याज्य गुण होता कहां है?
रूप चाहे जो भी धर ले।
आ ठहर विश्राम कर ले।।
सरोज यादव