Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jan 2017 · 6 min read

आज़ादी के मायने ढूंढता गणतंत्र

आज़ादी के मायने ढूंढता गणतंत्र

सुशील कुमार शर्मा

1947 में कहने को तो हम अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हो गए किन्तु विचारणीय बात यह है कि जिन कारणों से हमारे ऊपर विदेशियों ने एक हज़ार सालों तक राज्य किया क्या वो कारण समाप्त हो गए ?उत्तर है नहीं एवं इसका कारण हैं हमारे अंदर राष्ट्रीयता का अभाव।राष्ट्र कोई नस्लीय या जनजातीय समूह नहीं होता वरन ऐतिहासिक तौर पर गठित लोगो का समूह होता है,जिसमे धार्मिक ,जातीय एवं भाषाई विभिन्नताएं स्वाभाविक हैं। किसी भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए राष्ट्रीयता की भावना बहुत आवश्यक है। राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता एक ऐसी वैचारिक शक्ति है जो राष्ट्र के लोगों को चेतना से भर देती है एवं उनको संगठित कर राष्ट्र के विकास हेतु प्रेरित करती है तथा उनके अस्तित्व को प्रमाणिकता प्रदान करती है।
‘’असली भारत भूगोल नहीं, राजनीतिक इतिहास नहीं बल्‍कि अंतर् यात्रा है। आत्‍मा की खोज है। प्रकाश का अनुसंधान है। अध्ययन , अनुभूति और आध्यात्म है असली भारत . शंकर , राम, कृष्ण इसके प्रणेता हैं …प्रकाश स्तम्भ हैं। महावीर, बुद्ध ,नानक, गोरख, रैदास आदि हजारों नाम हैं जो भारत का प्रतिनिधित्‍व करते हैं।
हम अपनी स्वतंत्रता के 70 वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं. मेरा मानना है कि स्वतंत्रता दिवस के मनाने में यह संदेश होना चाहिए कि हम अब स्वतंत्र हैं. हमारा खुद का तंत्र है. हम पर “कोई” राज नहीं कर रहा है, “हम” ही अपने पर राज कर रहे हैं. इसमें प्रत्येक नागरिक की सहभागिता है. 4 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में सत्ता के हस्तांतरण का एग्रीमेंट हुआ था |गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और इस सम्बन्ध में गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया |
संविधान का ‘भारत ‘ कहीं लुप्त हो रहा है और ‘इंडिया ‘भारतीय जन मानस की पहचान बनता जा रहा है। आज की पीढ़ी के लिए भारत के तीर्थ स्थल ,स्मारक ,वनवासी आदिवासी ,सामाजिक एवं धार्मिक परम्पराएँ सब गौण हो गईं हैं। उनके लिए इंग्लैंड ,अमेरिका में पढ़ना एवं वहां की संस्कृति को अपनाना प्रमुख उद्देश्य बन गया है।
भारतीय राष्ट्रीयता के वाहक राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति को गौरव गरिमा प्रदान की है ,स्वामी विवेकानंद तो भारत की पूजा करते थे उनके अनुसार भारतीयता के बिना भारतीय नागरिक का अस्तित्व शून्य है भले ही वह कितने भी व्यक्तिगत गुणों से संपन्न क्यों न हो। आज की युवापीढ़ी इनके पदचिन्हों पर न चल कर सिनेमाई नायकों एवं नायिकाओं को अपना आदर्श बना रही है।
आज भी देश में आजादी के 69 सालों बाद भी जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता, भ्रष्टाचार, आर्थिक और सामाजिक असमानता, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा, अनियंत्रित जनसंख्या जैसी अनेक भीषण समस्यायें देश के सामने व्यवधान बनके के खड़ी हैं| हालांकि हमने काफी उन्नति भी हासिल की है कई क्षेत्रों में लेकिन अब भी समाज का समग्र रूप से विकास नहीं हो पाया है|
भारत देश में हर जगह, हर वर्ग एवं स्तर बदलाव की अनुभूति कर रही है।लेकिन इस बदलाव की बहार के बीच यह बुनियादी सवाल उठाये जाने की जरूरत है कि हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं, वह वास्तव में कितना सम्प्रभु है, कितना समाजवादी है और कितना जनवादी है? पिछले 69 वर्षों के दौरान आम भारतीय नागरिक को कितने जनवादी अधिकार हासिल हुए हैं? हमारा संविधान आम जनता को किस हद तक नागरिक और जनवादी अधिकार देता है और किस हद तक, किन रूपों में उनकी हिफाजत की गारण्टी देता है? संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकार अमल में किस हद तक प्रभावी हैं? संविधान में उल्लिखित नीति-निर्देशक सिध्दान्तों से राज्य क्या वास्तव में निर्देशित होता है? ये सभी प्रश्न एक विस्तृत चर्चा की माँग करते हैं।
विकास के पथ पर –
मैं इतना निराशावादी भी नहीं हूँ कि ये कहूँ की स्वतंत्रता के 69 साल बाद भी हमने कोई प्रगति नहीं कई है। भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सम्‍यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद पिछले 69 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है।
इन 69 सालों में भारत ने विश्व समुदाय के बीच एक आत्मनिर्भर, सक्षम और स्वाभिमानी देश के रूप में अपनी जगह बनाई है. सभी समस्याओं के बावजूद अपने लोकतंत्र के कारण वह तीसरी दुनिया के अन्य देशों के लिए एक मिसाल बना रहा है. उसकी आर्थिक प्रगति और विकास दर भी अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरक तत्व बने हुए हैं |
बहुत कठिन है डगर पनघट की
-लेकिन इन सब प्रगति सोपानों के बीच भारत का गण आज भी विकास के उस छोर पर खड़ा है जंहा से मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। स्वतंत्रता हासिल करने पर जिन उच्च आदर्शों की स्थापना हमें इस देश व समाज में करनी चाहिए थी, हम आज ठीक उनकी विपरीत दिशा में जा रहे हैं और भ्रष्टाचार, दहेज, मानवीय घृणा, हिंसा, अश्लीलता और कामुकता जैसे कि हमारी राष्ट्रीय विशेषतायें बनती जा रही हैं ।समाज मे ग्रामों से नगरों की ओर पलायन की तथा एकल परिवारों की स्थापना की प्रवृत्ति पनप रही है इसके कारण संयुक्त परिवारों का विघटन प्रारम्भ हुआ उसके कारण सामाजिक मूल्यों को भीषण क्षति पहुँच रही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संयुक्त परिवारों को तोड़ कर हम सामाजिक अनुशासन से निरन्तर उछूंखलता और उद्दंडता की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। इन 69 वर्षों में हमने सामान्य लोकतन्त्रीय आचरण भी नहीं सीखा है। भ्रष्टाचार में लगातार वृद्धि होती गई है और इस समय वह पूरी तरह से बेकाबू हो चुका है. भ्रष्टाचार सरकार के उच्चतम स्तर से लेकर निम्नतम स्तर तक व्याप्त है. समाज का भी कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं बच सका है। देश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे भ्रष्टाचारियों के काले कारनामे, सार्वजनिक धन का शर्मनाक हद तक दुरुपयोग, सार्वजनिक भवनों व अन्य सम्पत्तियों को बपौती मानकर निर्लज्यता पूर्ण उपभोग कर रहे हैं आखिर ये सब किस प्रकार का आदर्श हमारे समक्ष उपस्थित कर रहे हैं।आजादी के 69 साल बाद भी भारत अनेक ऐसी समस्याओं से जूझ रहा है जिनसे वह औपनिवेशिक शासन से छुटकारा मिलने के समय जूझ रहा था।हमारी अस्मिता हमारी मातृभाषा होती है। अगर हम अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा को प्रमुखता देंगे तो निश्चित ही हम राष्ट्रीयता की मूल भावना से भटक रहे हैं।इस देश के गण से भी कई सवाल हैं। …………. 100 रूपये में अपना मत बेचने वाले गण क्या तंत्र से सवाल पूछ सकते हैं। …………… पडोसी के घर चोरी होती देख छुप कर सोनेवाल गण क्या स्वतंत्रता पाने का अधिकारी है। ……………… भ्रूण में बेटी की हत्या करनेवाल गण किस मुंह से तंत्र से सवाल पूछेगा। …………. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिमायती गण आतंकियों की फांसी पर सवाल खड़े करेगा तो उसे ये भी भुगतना होगा। ………।प्रश्न बहुत है उत्तर देने वाला कोई नहीं। ………………. सुलगते सवालों के बीच यह स्वतंत्र गणतंत्र। ……………गण से अलग खड़ा तंत्र। ………. और तंत्र से त्रासित गण एक दुसरे के पूरक होकर भी अपूर्ण हैं। हमें समझना होगा की राष्ट्रवाद की भावना ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘की भावना से आरम्भ हो कर आत्म बलिदान पर समाप्त होती है।
एक प्रार्थना(where the mind is without fear )जो कविवर रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी हम सभी को करनी चाहिए।

जहाँ मष्तिस्क भय से मुक्त हो।
जहाँ हम गर्व से माथा ऊँचा कर चल सकें।
जहाँ ज्ञान बंधनो से मुक्त हो।
जहाँ हर वाक्य हृदय की गहराइयों से निकलता हो।
जहाँ विचारों की सरिता तुच्छ आचारों की मरुभूमि में न खोती हो.।
जहाँ पुरूषार्थ टुकडों में न बंटा हो
जहाँ सभी कर्म भावनाएं एवं अनुभूतियाँ हमारे वश में हों।
हे परम पिता !उस स्वातंत्र्य स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जाग्रत करो ।

Language: Hindi
Tag: लेख
552 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मेरे भाव मेरे भगवन
मेरे भाव मेरे भगवन
Dr.sima
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
हीरो बन जा
हीरो बन जा
मधुसूदन गौतम
पहला कदम
पहला कदम
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
SATPAL CHAUHAN
*वह बिटिया थी*
*वह बिटिया थी*
Mukta Rashmi
*वो जो दिल के पास है*
*वो जो दिल के पास है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
युगांतर
युगांतर
Suryakant Dwivedi
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
Neeraj kumar Soni
गुपचुप-गुपचुप कुछ हुए,
गुपचुप-गुपचुप कुछ हुए,
sushil sarna
पुराना कुछ भूलने के लिए
पुराना कुछ भूलने के लिए
पूर्वार्थ
मैं चाहता था कोई ऐसी गिरफ्त हो,
मैं चाहता था कोई ऐसी गिरफ्त हो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
देर तक शाख़ पर नहीं ठहरे
देर तक शाख़ पर नहीं ठहरे
Shweta Soni
*जीवन सिखाता है लेकिन चुनौतियां पहले*
*जीवन सिखाता है लेकिन चुनौतियां पहले*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आपके
आपके "लाइक्स"
*प्रणय*
हर दिन एक नई दुनिया का, दीदार होता यहां।
हर दिन एक नई दुनिया का, दीदार होता यहां।
Manisha Manjari
4750.*पूर्णिका*
4750.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
महापुरुषों की मूर्तियां बनाना व पुजना उतना जरुरी नहीं है,
महापुरुषों की मूर्तियां बनाना व पुजना उतना जरुरी नहीं है,
शेखर सिंह
इस दुनिया में सबसे बड़ा और अच्छा इंसान वही है जो गरीब को गरी
इस दुनिया में सबसे बड़ा और अच्छा इंसान वही है जो गरीब को गरी
Ranjeet kumar patre
*आया पतझड़ तो मत मानो, यह पेड़ समूचा चला गया (राधेश्यामी छंद
*आया पतझड़ तो मत मानो, यह पेड़ समूचा चला गया (राधेश्यामी छंद
Ravi Prakash
" तार हूं मैं "
Dr Meenu Poonia
ख़ुद को हमारी नज़रों में तलाशते हैं,
ख़ुद को हमारी नज़रों में तलाशते हैं,
ओसमणी साहू 'ओश'
हौसलों की उड़ान जो भरते हैं,
हौसलों की उड़ान जो भरते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
सर्द और कोहरा भी सच कहता हैं
सर्द और कोहरा भी सच कहता हैं
Neeraj Agarwal
कुछ नमी अपने साथ लाता है ।
कुछ नमी अपने साथ लाता है ।
Dr fauzia Naseem shad
खंजर
खंजर
AJAY AMITABH SUMAN
"बाजार "
Dr. Kishan tandon kranti
"मेरा प्यार "
DrLakshman Jha Parimal
अरमान
अरमान
Kanchan Khanna
Loading...