आज़ादी की कीमत
********आजादी की कीमत***********
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आजादी की कीमत को न बंदा जग में जाने रे,
पिंजरे अंदर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
रक्तकुण्ड में कितनों ने अमूल्य रक्त बहाया था,
आजादी के परवानों ने जीवन दाव लगाया था,
घर में जो दुबके बैठे भला क्या कीमत जाने रे।
पिंजरे अंदर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
शमशीरों ने धूल चटाई गोरों की सरकारों को,
जड़ से ही उखाड़ फैंका फिरंगी सरकारों को,
भयभीत भीरू भला जो क्या कीमत जाने रे।
भीरू प्रवृति वाले हो ,तुम क्या कीमत जाने रे।
पिंजरे अंदर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
शूरवीरों की शूरता से अमूल्य आजादी पाई है,
भारतमाँ के वीर बाँकुरों ने खूब जाने गंवाई है,
लाल लहू रंगीं आजादी की क्या कीमत जाने रे।
पिंजरे अंदर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
रक्त दे पाई आजादी जिसका कोई है मोल नहीं,
कण कण में सोया शहीद,शहीदी का तोल नहीं,
खून खौलता नहीं जिनका क्या कीमत जाने रे।
पिंजरे अन्दर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
रणबांकुरों ने रणभूमि में पीठ नहीं दिखाई थी,
पराक्रम की गर्जना सुनके चंडी भी घबराई थी,
तन मन से जो हारे बैठे वो क्या कीमत जानो रे।
पिंजरे अन्दर कैद परिंदा ही कीमत पहचाने रे।
मनसीरत वंदन कर श्रद्धांजलि अर्पित करता है,
शहीदों की शहादत को सुमन समर्पित करता है,
निज रंग में रंगा रंगीला जो क्या कीमत जाने रे।
पिंजरे अन्दर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
आजादी की कीमत को न बंदा जग में जाने रे।
पिंजरे अन्दर कैद परिन्दा ही कीमत पहचाने रे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)