आज़ादियाँ हैं कम यहाँ
आज़ादियाँ हैं कम यहाँ,
तुम लड़ने तो आओ ज़रा,
है दम घुटने वाली फ़िज़ा,
साँस यहाँ लेना मुश्किल,
कुछ तो करो कोई जतन,
ताकि ख़ुशहाल हो ये वतन,
आज़ादियाँ हैं कम यहाँ,
तुम लड़ने तो आओ ज़रा।
फैला है ये कोहरा यहाँ,
धुन्ध देखो कितनी घनी,
बादल ये हटेंगे कब ,
ये रोशनी भी दिखे कहीं,
आज़ादियाँ हैं कम यहाँ,
तुम लड़ने तो आओ ज़रा।
ख़्वाब सारे सच हों जहाँ,
ख़ुशियों का चमन बनाएँ यहाँ,
कोई दुःखी अब रहे नहीं,
रातों को जुगनू जलाएँ यहाँ,
आज़ादियाँ हैं कम यहाँ,
तुम लड़ने तो आओ ज़रा।
…………. जगदीप जुगनू………..