#आह्वान_तंत्र_का
#लघुकविता-
■ समझौतों की भाषा त्यागो।।
【प्रणय प्रभात】
“दो फेंक दूर झुनझुना कहीं,
ना लोरी गा कर बहलाओ।
इससे पहले कुरुक्षेत्र बने,
ये देश दुष्ट-दल दहलाओ।।
क्यों सीमा रक्तिम रहे नित्य,
क्यों मानवता को त्रास मिले?
क्या मतलब दया दिखाने का,
यदि बदले में उपहास मिले?
किसलिए खरीदे अस्त्रायुध,
यदि करना है उपयोग नहीं,
हम छले गए हैं कई बार,
अब नूतन कोई प्रयोग नहीं।
अब प्रासंगिक है रौद्र रूप,
समझौतों की भाषा त्यागो।
या शत्रुविहीन धरा कर दो,
या छोड़ के सिंहासन भागो।।
■ प्रणय प्रभात ■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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#सरहद #पाकिस्तान