आह्वान पढ़ने का (ब्रजभाषा गीत)
आह्वान पढने का
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पढ़बे में काहे घबराऔ ,
लिखबे में काहे सरमाऔ , सुनौ हमारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौं ,कलम दुधारी रे ।।
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अनपढ़ कौ जीनौ कहा जीनौ , मन में तनक बिचारौ ,
अनपढ़़ लागै जैसै छोरा बूढ़ौ है जाय क्वारौ ,
बाकूँ कबहु अकल नाय आबै ,
यौं ही बीत उमरिया जाबै,
वाकी सारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौ कलम दुधारी रे ।।(१)
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छोरी के हाथन में चिट्ठी कौने में सरमाबै ,
कहा लिखी बलमा नै कैसै दूजे पै बचवाबै ,
ठाड़ी-ठाड़ी मन पछताबै ,
सोचै सिकुचावै झिर्राबै ,
होवै ख्वारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौ कलम दुधारी रे ।।(२)
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जानै पढ़ लिये ढाई आँखर ,ऊ ही पंडत ज्ञानी ,
बाकी बात न गिरै सभा में, हर काई नै मानी ,
इतनी बात हमारी मानौ ,
अब तौ त्यागौ अनपढ़ बानौ ,
कहा लाचारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौ कलम दुधारी रे ।।(३)
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गाम-गाम मेंं गली-गली में , एक-एक बाखर में,
दीयौ लै कै हाथन ढूँढ़ौ , अनपढ़ कूँ हर घर में,
यामें टका न लगै तिहारौ ,
सीखौ कागद करनौ कारौ ,
बैठ अटारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौ कलम दुधारी रे ।।(४)
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चौपारन पै चरचा करकै , नई चेतना लाऔ ,
सब हिल-मिल कै चलौ , ज्ञान की घर-घर ज्योति जराऔ ,
मावस्या कौ ई अँधियारौ ,
भाजै दूर होय उजियारौ ,
मनै दिबारी रे ।
अब तौ हाथन में थामौ कलम दुधारी रे ।।(५)
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महेश जैन ‘ज्योति’, मथुरा !
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