आहें जीवन का गीत रहा है।
किसे बताऊं हाल है दिल का
दिल पर क्या क्या बीत रहा है।
भटका भटका फिरता हूं कि
आहें जीवन का गीत रहा है।
बचपन में पचपन के जैसे
चिंता चिता मुझे बनाया।
खेल कूद के उम्र में देखो
मैंने कुंतल भार उठाया।
दर्द मेरे गीतों के तुमको
लग चाहे संगीत रहा है।
किसे बताऊं हाल है दिल का
दिल पर क्या क्या बीत रहा है।
भटका भटका फिरता हूं कि
आहें जीवन का गीत रहा है।
एक खिलौना बन बैठा हूं
जो भी आए खेले मुझसे।
मैं पत्थर हूं ,बैठे ,लिपटे
घिसटे जो मन कर ले मुझसे।
मेरी तृष्णा प्रेम रही है
सदियों से गम गीत रहा है।
किसे बताऊं हाल है दिल का
दिल पर क्या क्या बीत रहा है।
भटका भटका फिरता हूं कि
आहें जीवन का गीत रहा है।
कुछ गम के पल साथ बिताओ
यारा आओ हंसो हंसाओ।
देखो बिखर न जाऊं कहीं मैं
मेरी जाना पास बुलाओ
मेरी जाना गले लगाओ।
जो सदियों से जला है “दीपक”
वो तेरा मनमीत रहा है।
किसे बताऊं हाल है दिल का
दिल पर क्या क्या बीत रहा है।
भटका भटका फिरता हूं कि
आहें जीवन का गीत रहा है।
दीपक झा रुद्रा