आहत
ये उन दिनों की बात है जब मेरे सामने वाले फ्लेट में एक बुजुर्ग शर्मा दंपति रहते रहते थे।
वह नियम पूर्वक रोज सवेरे उठकर सैर पर जाते और नियमानुसार अपनी दिनचर्या व्यतीत कर रहे थे ।
शर्मा जी शासकीय अधिकारी के उच्च पद पर रहकर सेवानिवृत्त हुए थे । उनका एक ही बेटा था जिसका नाम पवन था ।शर्मा जी ने पवन को उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजा ।उसकी शिक्षा के लिए उन्होंने बैंक से उच्चशिक्षा ऋण भी लिया था ।
पवन नेअमेरिका में उच्च शिक्षा समाप्त कर वही नौकरी प्राप्त कर ली । पहले वह वर्ष में एक बार स्वदेश आता और माता-पिता से मिलकर जाता रहता था। समय बीतते उसने अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर ली । वह अपने माता-पिता को भी साथ लेने लेकर जाना चाहता था । परंतु उन्हें बुजुर्ग होने की वजह से वहां की नागरिकता मिलना असंभव था।
वह एक बार उन्हें अपने साथ अमेरिका घुमाने भी ले गया गया और शर्मा जी और उनकी पत्नी घूम कर वापस आ गए ।
शर्मा जी के पास पवन की शादी के प्रस्ताव आने शुरू हो गए हो गए । शर्मा जी ने पवन से इस विषय में पूछा तो उसने टाल दिया कि वह अभी स्थायी रूप से नौकरी में सेटल नहीं हुआ है अतः वह अभी शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहता। क्योंकि शादी के बाद उस पर जिम्मेदारी अधिक हो जाएगी और बहू की भी अपेक्षाएं होंगी जिनसे उसे अपना ध्यान नौकरी पर केंद्रित करने में कठिनाई होगी ।अतः कुछ समय बाद वह खुद परिस्थितियां अनुकूल होने पर प्रस्ताव स्वीकृत कर लेगा। शर्मा जी को उसकी बात मानना पड़ा वे उस पर अनावश्यक दबाव इस बारे में डालना नहीं चाहते थे । इसी तरह दो वर्ष बीत गए परंतु उनके पुत्र ने इस विषय में चर्चा का कोई ठोस उत्तर नहीं दिया।
शर्मा जी और उनकी पत्नी परेशान थे उनके लड़के की उम्र बढ़ रही थी और इधर संबंधियों एवं मित्रों का दबाव उन पर विवाह के लिए पड़ने लगा था ।
इसी तरह कुछ समय बीतने पर एक दिन शर्मा जी के एक मित्र का लड़का विजय जिसकी भी नौकरी अमेरिका में लग गई थी अमेरिका पहुंच गया । वहां पहुंचने पर उसने शर्मा जी के दिए पते पर पवन से फोन पर संपर्क किया तो उसका फोन एक महिला ने उठाया और पूछने पर बताया कि पवन घर पर नहीं है अपने कार्य पर गए हैं । पूछने पर उसने अपने आपको पवन की पत्नी बताया । विजय के पूछने पर आपकी शादी कब हुई उसने बताया कि हमारी शादी यही अमेरिका में रजिस्टर्ड मैरिज हुई है और उसे दो वर्ष बीत चुके हैं।
विजय का माथा ठनका क्योंकि जहां तक उसे मालूम था की पवन की शादी की ख़बर अब तक किसी को नहीं है यहां तक की उसके मां-बाप इस बात से बेखबर हैंं ।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इसे सच माने या झूठ । अतः उसने वस्तुःःस्थिति पता लगाने के लिए पवन से मिलने का निश्चय किया ।
अपने ऑफिस की छुट्टी के दिन उसने पवन से फोन पर बात की और निर्धारित समय पर मिलने के लिए उसके घर पहुंचा । उस दिन पवन की भी छुट्टी थी और वह घर पर ही था । पवन ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया ।और माता-पिता और दोस्तों के हाल चाल पूछने के बाद बातों का सिलसिला आगे बढ़ा । उसने बताया कि अमेरिका आने के बाद उसका अपनी एक सहकर्मी लड़की से प्रेम हो गया था ।
कुछ वर्ष दोनों ने एक साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे परंतु उन्होंने कुछ समय बाद शादी करने का फैसला कर शादी कर ली ।
शादी उन्होंने रजिस्टर कोर्ट मैरिज माध्यम से की उसने यह बात अपने माता-पिता से छुपा कर रखी थी ।क्योंकि वह लड़की दक्षिण भारतीय क्रिश्चियन समुदाय की है जिसे किसी भी दशा में उसके माता-पिता स्वीकार नहीं करते और उसने इसे अपनी मजबूरी बताया । विजय ने पाया कि पवन काफी सहज था उसमें इस कृत्य का कोई अपराध बोध नहीं था ।
विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस मुंह से यह सब सूचना शर्मा परिवार को दें ।उसने पवन से कहा तुम क्यों नहीं इस बारे में विस्तृत रूप मे एक पत्र के माध्यम से अपने परिवार वालों को सूचित करते। पवन इसके लिए राजी हुआ और उसने समयवार एक विस्तृत चिट्ठी अपने पिता को लिखी जिसमे उसने पूर्ण वृत्तांत सिलसिलेवार स्पष्ट करते हुए लिखा और विजय को दे दिया। कुछ देर बाद पवन की पत्नी जो कार्य वश घर से बाहर गई थी लौट आई। विजय ने देखा कि वह एक छरहरी सी कुछ सांवली परंतु सुंदर लड़की थी । वह काफी मिलनसार व्यक्तित्व की थी ।उसने अपने हाथों से दक्षिण भारतीय खाना चावल, सांभर ,रसम, चटनी ,सब्जी और अन्य पकवान बनाकर विजय को खिलाए जो कि बहुत स्वादिष्ट बनाए थे । विजय ने समय मिलते ही वह पत्र डाक द्वारा शर्मा जी के पते पर भेज दिया।
शर्मा जी को जब पत्र मिला देखकर प्रसन्न हुए कि पवन ने इतने समय बाद पत्र लिखा है ।
पत्र पढ़ने के बाद वस्तुःस्थिति पता चली तो उनकी काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई । स्तब़्ध होकर छत पर लटके पंखे को देखते रहे उनको लगने लगा कि उनके सपनों का महल अब उनके सर पर भरभरा कर गिरने वाला है । यह जानकर उनकी पत्नी का तो तो रो-रो कर बुरा हाल हो गया। उनका दुख इस प्रकार का था कि वह प्रकट भी नहीं कर सकते थे और सहन भी नहीं कर सकते थे । प्रकट करते तो समाज में उनकी जगहँसाई होती और बर्दाश्त करने की हिम्मत जवाब दे चुकी थी ।
आखिरकार उन्होंने अपने आपको किसी तरह संभाला और इस हक़ीकत को अपने सीने में दफ़न कर चुप रहना श्रेयस्कर समझा । उन्होंने सोचा कि ज्यादा से ज्यादा लड़का कुंवारा रह गया है यह आरोप समाज उन पर लगाएगा जिसे वे सहन कर लेंगे । परंतु किसी विजातीय लड़की से संबंध रख शादी करने की बात की बदनामी को सहन न कर सकेंगे । इस तरह दुख हो दबाए शर्मा दंपति चुपचाप रहने लगे । वे किसी से बात भी नहीं करते थे लोगों से उन्होंने मिलना जुलना बहुत कम कर दिया और तो और किसी भी शुभ कार्य के निमंत्रण तक पर नहीं जाते थे । शर्मा जी की दिनचर्या सुबह सैर पर जाना उसके बाद अखबार पढ़ना फिर टीवी देखना तक सीमित रह गया था ।धीरे धीरे अंदर का दुःख उन्हें सालने लग गया और शर्मा जी मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होने लगे । धीरे धीरे उनकी कमजोरी बढ़ने पर उन्होंने सैर पर जाना भी छोड़ दिया । शर्मा जी की पत्नी पर इसका बहुत गहरा असर पड़ा वे चिड़चिड़ी हो गईं और नौकरानी को अनावश्यक रूप से डांटती और बड़बड़ाती रहती थी।
उस दिन मैं सुबह उठकर दूध लेने के लिए बाहर निकला था कि शर्मा जी की पत्नी घबराकर मेरे पास आई और कहने लगी शर्मा जी सो कर जगाने पर भी नहीं उठ रहे हैं कृपया चल कर कर देखिए मुझे बहुत डर लग रहा है ।
मैं तुरंत अंदर गया तो देखा शर्मा जी शांत रूप में बिस्तर पर लेटे हुए हैं । मैंने शर्मा जी को हिलाकर जगाने की कोशिश की पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । फिर मैंने शर्मा जी हाथ पकड़कर हाथ पकड़कर नब्ज टटोली वह नदारद थी । मैंने शरीर पर हाथ रखकर
देखा शरीर ठंडा पड़ चुका था।
शर्मा जी की प्राण पखेरू उड़ चुके थे और नश्वर शरीर को छोड़कर उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो चुकी थी ।
फिर भी मैंने तुरंत अपने संज्ञान पर काबू रखना उचित समझा । उनकी पत्नी से कहा मैं डॉक्टर को बुलाता हूं और मैंने पास के डॉक्टर को फोन करके बुला लिया उन्होंने परीक्षण कर शर्मा जी को मृत घोषित कर दिया ।
जिसे सुनकर शर्मा जी की पत्नी मूर्छित होकर गिर पड़ीं पड़ोस की महिलाओं ने उन्हें संभाला ।
मैंने फोन पर इसकी सूचना पवन को दी । पवन ने कहा और जल्दी से जल्दी भी आएगा तो भी वह परसों सुबह ही पहुंच पाएगा ।
क्योंकि मुखाग्नि इकलौता पुत्र होने की खातिर पवन को ही देनी थी । अतः मैंने refrigerated बॉक्स में पवन के आने तक शव को रखने की व्यवस्था करवा दी । तीसरे दिन सवेरे पवन आ गया और उसने दाह संस्कार एवं अन्य क्रिया कर्म निष्पादित किए ।
इस घटना के बाद शर्मा जी की पत्नी की हालत विक्षिप्त सी हो गई । वह हमेशा चुप रहने लगी ।
कुछ दिन तो वह अपने भाई के घर रही परंतु बाद में उनके भाई ने उन्हें वृद्धाश्रम में भर्ती कर अपनी जिम्मेदारी से निज़ात पाली ।
पवन ने वृद्धाश्रम में एक मुश्त रकम जमा करके पुत्र होने के कर्तव्य का निर्वाह कर लिया।