आस
पांच साल बाद बेटा बहू और पोते को लेकर दिवाली पर घर आ रहा था। कुसुम बड़े मनोयोग से सब तैयारियों में जुटी थी। बाहर भीतर घर चंदन करने में अपनी जान लगा रही थी।
पोते को देखने को तरसी आंखे बार बार छलक उठती थीं। शाम होने को आई थी। मन आशंकित होता जा रहा था , कहीं बहू सीधे मायके तो नहीं चली गई। पर काफी इंतज़ार के बाद बच्चे घर आ गये। जैसे पूरा घर चहचहाने लगा। मन के दीपक जल उठे। सब खुश थे। दो दिन बाद बेटे को ससुराल भी जाना था। बहू का भाई भी आया भाईदूज का टीका खाना पीना शोर हंसी मजाक , पता ही नहीं चला समय कैसे बीता। लौटते समय फिर आने को कह बच्चे घूमने चले गये। जैसे जीने का बहाना मिल गया। दुकाने जो नीरस दिखाई देती थीं अचानक जैसे जीवंत हो उठीं। तरह तरह के खानो की तैयारी में कुसुम दिलोजान से लगी रही। अपनी उम्र , तबियत सब पसीने से तरबतर उसकी मुस्कानो में खोती रही। मेज पर जगह नहीं बची थी न ही फ़्रिज में।
बच्चे आये। बहू के मायके से ड्राईवर और नौकर साथ आया। कुसुम ने उन्हे बहुत प्यार से खाना खिला कर विदा किया। बच्चो को इकट्ठा किया सामान दिखाने लगी। बेटा मां का दिल रखने की पुरजोर कोशिश कर रहा था।
पर समय कुछ और लिखना चाहता था। बहू का भाई भी इसी शहर में रहता है। आने के कुछ देर बाद ही बहू ने कहा वो अब भाई के घर जायेगी क्योंकि उसने नया घर लिया है। वहीं खाना खायेंगे और वहीं से सवेरे चले जायेंगें।
देर रात तक कुसुम सब समेटती रही, आंसुओं ने न जाने क्यूं बहने से इंकार कर दिया था।