आसमान से नहीं उतरते
दोहे
आसमान से नहीं उतरते, थैले बोरी यार।
नेक कमाई कर सदा, तभी चले घर बार।।
धरे हाथ पर हाथ जो, बैठे हैं नर नार।
उनको भोजन करन का, नहीं कभी अधिकार।।
काम-धाम करते नहीं, मांगे खाएं दान।
परजीवी उनको कहो, यही सही पहचान।।
छीना-छपटी कर रहे, कैसे जाहिल लोग।
कष्ट कमाई हर रहे, लगा मानसिक रोग।।
-विनोद सिल्ला